प्रदीप कुमार की फिल्म ‘संबंध’ में कवि प्रदीप ने बड़ा उम्दा गीत रचा था- ‘तुमको तो करोड़ों साल हुए बतलाओ गगन गंभीर/ इस प्यारी-प्यारी दुनिया में क्यों अलग-अलग तकदीर/.. कहीं मन पंछी आकाश उड़े, कहीं पांव पड़ी जंजीर।’ यह विविधता संसार का शाश्वत सत्य है। सब कुछ एक जैसा हो जाए, तो क्या तुम, क्या हम। तुलसीदास ने कहा भी है- ‘तुलसी इस संसार में भांति-भांति के लोग/ सबसे हंस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।’ एक ही छत के नीचे रहने वाले भी सोच-समझ के मोर्चे पर उत्तर-दक्षिण हो सकते हैं। जब किसी जोड़े के विचारों में जमीन-आसमान का फर्क होता है, तो घटनाएं कैसे करवट लेती हैं, इस पर अजीतपाल सिंह ने ‘फायर इन द माउंटेंस’ ( Fire In The Mountains ) नाम से फिल्म बनाई है। वे अब तक शॉर्ट फिल्में बनाते रहे हैं। दो साल पहले उनकी 19 मिनट की ‘रमत गमत’ काफी सराही गई थी। ‘फायर इन द माउंटेंस’ उनकी पहली फीचर फिल्म है। यह प्रदर्शन से पहले ही सुर्खियों में है, क्योंकि सनडांस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह ( Sundance International Film Festival ) के लिए चुनी गई इकलौती भारतीय फीचर फिल्म है। बर्फीले पहाड़ों के लिए मशहूर अमरीका की पार्क सिटी में 28 जनवरी से शुरू होने वाले इस समारोह में ‘फायर इन द माउंटेंस’ का प्रीमियर होगा। पिछले साल इसी समारोह में निर्भया कांड पर बनी रिची मेहता की ‘दिल्ली क्राइम’ का प्रीमियर हुआ था, जिसने हाल ही एमी अवॉर्ड जीता है।
पहाड़, पीड़ा और प्रकाश
‘फायर इन द माउंटेंस’ हिमालय की गोद में बसे एक गांव की जुझारू महिला (विनम्रता राय) की कहानी है, जो गांव में सड़क बनाने के लिए कड़ी मेहनत से पैसे जोड़ रही है, क्योंकि कच्चे रास्तों से उसे अपने बेटे को व्हील चेयर पर इलाज के लिए ले जाने में काफी दिक्कत होती है। बेटा दिमागी तौर पर कमजोर है। पति (चंदन बिष्ट) से इस महिला को कोई सहयोग और समर्थन नहीं मिलता, जो मानता है कि बेटा जादू-टोने से ठीक हो सकता है। पस्त हौसलों वाले इसी तरह अंधविश्वास की पनाह में रहते हैं। फिल्म इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि जिन्हें खुद पर भरोसा नहीं होता, वही चमत्कारों पर भरोसा करते हैं। मन और तन की ताकत से दूसरे अंधेरी सुरंग में भी उजाला ढूंढ लेते हैं।
कहानी सुनाने के फन में माहिर
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाई साहब’ से प्रेरित अजीतपाल सिंह की शॉर्ट फिल्म ‘रमत गमत’ में फुटबॉल की पृष्ठभूमि में दो दोस्तों के रिश्तों को जिस सूझ-बूझ से पर्दे पर उतारा गया था, उसे देखते हुए साफ हो गया था कि अजीतपाल न सिर्फ कैमरे की भाषा की समझ रखते हैं, बल्कि कहानी सुनाने का फन भी जानते हैं। सिनेमा में कहानी से कहानीकार ज्यादा महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
शॉर्ट फिल्म भी करेगी शिरकत
बहरहाल, सनडांस समारोह में एक भारतीय शॉर्ट फिल्म ‘राइटिंग विद फायर’ (क्या बात है, ‘आग’ दोनों तरफ है) भी दिखाई जाएगी। यह निर्देशक थॉमस- घोष की पहली कोशिश है। यह दलित महिलाओं के एक दल के बारे में है, जो अखबार निकालता है और बदलते वक्त को देखते हुए डिजिटल की दुनिया में कदम जमाना चाहता है। किस्म-किस्म के भेदभाव वाले समाज में यह काम आसान नहीं है, लेकिन मजबूत इरादों वाली ये महिलाएं जब ठान लेती हैं, तो मुश्किलें भी बढ़ते-बढ़ते आसान होने लगती हैं। शहरयार ने फरमाया है- ‘कहिए तो आसमां को जमीं पर उतार लाएं/ मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए।’