दोनों को था कैंसर
विनोद खन्ना और फिरोज खान दोनों को कैंसर था। जहां विनोद को ब्लॉडर कैंसर था, वहीं फिरोज को लंग कैंसर था। खास बात ये कि दोनों मरते दम तक दोस्त रहे। कहा जाता है कि फिरोज खान के निधन से पहले विनोद खन्ना उनसे मिलने मुंबई के एक अस्पताल में गए थे, जहां वे भर्ती थे। उनके साथ धर्मेन्द्र भी थे। दोनों एक—दूसरे से मिलने पर इतना रोए कि चुप कराना मुश्किल हो गया था।
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निभाए दोस्त के किरदार
दोनों अभिनेताओं ने दोस्ती के किरदार फिल्मों में भी निभाए। 1980 में आई फिल्म ‘कुर्बानी’ में दोनों की दोस्ती दिखाई गई। इसके बाद 1988 में आई ‘दयावान’ भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला। दोस्तों के किरदार में उनकी पहली हिट 1976 में आई फिल्म ‘शंकर शम्भू’ थी। 1986 में आई फिल्म ‘जांबाज’ में फिरोज खान दोस्त विनोद खन्ना को लेना चाहते थे। हालांकि ये रोल अनिल कपूर ने प्ले किया। तक तक विनोद खन्ना ग्लैमर इंडस्ट्री का मोह छोड़ चुके थे। उन्होंने सबकुछ छोड़ ओशो रजनीश की शरण ले ली। यह वो समय था जब अमिताभ बच्चन के बाद वह इंडस्ट्री के सबसे पॉपुलर एक्टर थे।
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विनोद खन्ना की वापसी
हालांकि किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। विनोद ने ओशो के आश्रम से लौटकर ग्लैमर इंडस्ट्री में वापसी की। उनके लौटने पर स्वागत करने वालों में फिरोज भी थे। विनोद ने वापसी पर 1986 में मुकुल आनंद की ‘इंसाफ’ और राज ए सिप्पी की ‘सत्यमेव जयते’ में काम किया। इसके बाद 1988 में फिरोज खान की ‘दयावान’ में वे नजर आए।