scriptAnand Bakshi: गीतकार बनने का नहीं था सपना, राज कपूर की बदौलत पलटी किस्मत | Anand Bakshi did not dream of becoming a lyricis luck changed thanks to Raj Kapoor | Patrika News
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Anand Bakshi: गीतकार बनने का नहीं था सपना, राज कपूर की बदौलत पलटी किस्मत

आनंद बख्शी को अपने करियर में 40 फिल्मफेयर नॉमिनेशंस मिले, जिनमें से केवल चार बार ही उन्हें अवॉर्ड मिला। उन्होंने कई मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया, लेकिन आर.डी. बर्मन के साथ उनकी जोड़ी खासतौर पर सफल रही।

मुंबईJul 20, 2024 / 06:40 pm

Vikash Singh

बॉलीवुड के महान गीतकार आनंद बख्शी का नाम आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। उन्होंने अपने जीवन में जो गाने लिखे, वे आज भी सदाबहार बने हुए हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आनंद बख्शी कभी गीतकार नहीं बनना चाहते थे? उनका सपना था गायक बनने का, लेकिन किस्मत ने उन्हें शब्दों के जादूगर के रूप में बॉलीवुड को दिया।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

आनंद बख्शी का जन्म 21 जुलाई, 1930 को रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में एक मोहयल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मात्र पांच साल की उम्र में उनकी मां का निधन हो गया। विभाजन के समय उनका परिवार भारत आ गया और दिल्ली में बस गया। 14 वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘रॉयल इंडियन नेवी’ में कराची में सेवा की, लेकिन नेवी से बाहर निकाल दिए जाने के बाद उन्होंने आर्मी में भर्ती ले ली। 1950 में, उन्होंने गायक और गीतकार बनने का सपना लिए मुंबई की ओर रुख किया।

करियर की शुरुआत और संघर्ष

मुंबई पहुंचने के बाद आनंद बख्शी की मुलाकात अभिनेता भगवान दादा से हुई, जिन्होंने उन्हें अपनी फिल्म ‘भला आदमी’ में गीत लिखने का मौका दिया। हालांकि, इस फिल्म से उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिली, लेकिन यह बॉलीवुड में उनकी एंट्री का पहला कदम साबित हुआ।

राज कपूर की मदद से मिली पहचान

साल 1963 में, राज कपूर ने अपनी फिल्म ‘मेहंदी लगी मेरे हाथ’ में आनंद बख्शी को गाने का मौका दिया। लेकिन उनकी असली पहचान साल 1965 में आई फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ के गाने ‘परदेसियों से न अखियां मिलाना’ और ‘ये समा, समा है ये प्यार का’ से मिली। इन गानों ने आनंद बख्शी को म्यूजिक लवर्स के दिलों पर राज करने वाला गीतकार बना दिया।

फिल्मफेयर अवॉर्ड्स और पॉपुलैरिटी

आनंद बख्शी को अपने करियर में 40 फिल्मफेयर नॉमिनेशंस मिले, जिनमें से केवल चार बार ही उन्हें अवॉर्ड मिला। उन्होंने कई मशहूर संगीतकारों के साथ काम किया, लेकिन आर.डी. बर्मन के साथ उनकी जोड़ी खासतौर पर सफल रही। दोनों ने मिलकर ‘महबूबा महबूबा’, ‘सावन का महीना’, ‘ओम शांति ओम’, और ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ जैसे कई सुपरहिट गाने दिए।

अंतिम समय और विरासत

आनंद बख्शी अपने आखिरी दिनों में दिल की बीमारी से जूझ रहे थे। 30 मार्च 2002 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी स्मोकिंग की आदत उनकी मृत्यु का एक बड़ा कारण बनी। अपने पीछे उन्होंने अनगिनत बेहतरीन गाने छोड़े, जिनके जरिए वह आज भी फैंस के दिलों में जिंदा हैं।

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