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शहर में बहुमंजिला इमारतों के साथ-साथ सरकारी संस्थानों में आगजनी से बचाव के लिए कोई उपाय नहीं हैं। शहर ही नहीं बल्कि बिलासपुर संभाग में आने वाले जिलों में भी यही हाल है। स्थिति यह है कि आगजनी होने पर उसे तत्काल बुझाने के साधन नहीं होने के कारण एसडीआरएफ टीम के भरोसे रहना पड़ता है। नियम के तहत बहुमंजिला इमारतों में फायर फायइटिंग सिस्टम होने चाहिए। दूसरी ओर हर साल एसडीआरएफ की टीम को प्रत्येक बिल्डिंग में जाकर फायर सेफ्टी ऑडिट करना है, ताकि जहां-जहां यह व्यवस्था नहीं है उसे तत्काल दुरुस्त किया जा सके, लेकिन पिछले कई वर्षों से शहर में फायर सेफ्टी ऑडिट के अधिकारी अपने कार्यालयों से बाहर नहीं निकले हैं। इससे हर समय खतरे की आशंका बनी हुई है। सरकारी भवनों, स्कूलों समेत कई जगह नहीं है व्यवस्था
बिलासपुर जिले से लेकर संभाग भर के सरकारी भवनों, स्कूलों और अन्य सरकारी संस्थानों की इमारतों में फायर फाइटिंग सिस्टम तो दूर फायर सिलेण्डर तक नहीं है। इसके लिए संबंधित विभाग के प्रमुख जिम्मेदार हंै। यह उनकी जिम्मेदारी है कि आपात काल होने पर प्रारंभिक रूप से आग पर नियंत्रण पाने के लिए रखी जाए, फिर भी अनदेखी की जा रही है।
बिलासपुर जिले से लेकर संभाग भर के सरकारी भवनों, स्कूलों और अन्य सरकारी संस्थानों की इमारतों में फायर फाइटिंग सिस्टम तो दूर फायर सिलेण्डर तक नहीं है। इसके लिए संबंधित विभाग के प्रमुख जिम्मेदार हंै। यह उनकी जिम्मेदारी है कि आपात काल होने पर प्रारंभिक रूप से आग पर नियंत्रण पाने के लिए रखी जाए, फिर भी अनदेखी की जा रही है।
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जिन संस्थानों में फायर सेफ्टी के प्रबंध नहीं हैं वहां व्यवस्था दुरुस्त करने के निर्देश दिए गए हैं। फायर सेफ्टी ऑडिट की जा रही है। इसमें समय लग रहा है। लोगों को जागरूक करने के साथ स्कूलों और सरकारी संस्थानों में डेमो कराया जा रहा है। दिपांकुर नाथ, कमांडेंट नगर सेना व प्रभारी एसडीआरएफ फायर सिलेंडर हो चुके डेडकई सरकारी संस्थानों में दिखावे के लिए फायर सिलेंडर गिने चुने ही रखे गए हैं। इन सिलेंडरों की रिफलिंग हर वर्ष की जानी जरूरी है, ताकि व्यवस्था दुरुस्त रहे, लेकिन अधिकांश सिलेंडर डेड हो चुके हैं।
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