राज्य सरकार ने सहायक शिक्षक से शिक्षक और शिक्षक से प्रधान पाठक प्रमोशन की प्रक्रिया अप्रैल मई में शुरू की थी। काउंसलिंग के बाद प्रमोशन की प्रक्रिया हुई थी। इस दौरान पोस्टिंग में कई शिक्षकों को दूर दराज एवं अन्य जिलों में पोस्टिंग मिल गई। पोस्टिंग से असंतुष्ट हजारों शिक्षकों ने पोस्टिंग लेते ही संशोधन के लिए आवेदन किया। संयुक्त संचालक ने सभी के आवेदन पर विचार करते हुए निकट के शाला में पोस्टिंग दिया।
इसी बीच 4 सितंबर को सचिव स्कूल शिक्षा विभाग की तरफ से शिक्षकों को नई पोस्टिंग को निरस्त करते हुए एकतरफा शिक्षकों को संशोधित स्कूलों से कार्य मुक्त कर दिया गया। इस फैसले के खिलाफ शिक्षकों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 11 सितंबर को हुई सुनवाई में जस्टिस अरविंद चंदेल ने यथा स्थिति का आदेश दिया।
इस आदेश से सभी शिक्षकों को मुश्किलें बढ़ गई। जिससे वह ना तो स्कूलों में ज्वाइनिंग कर पाए और ना ही संशोधित शाला में लौट पाए। 3 नवंबर को हाईकोर्ट ने अंतिम निर्णय पारित किया जिसमें याचिकाकर्ताओं के अभ्यावेदन पर 45 दिनों के भीतर नए निर्णय लेने के लिए सचिव स्कूल शिक्षा विभाग के नेतृत्व में कमेटी बनाने को कहा गया। कोर्ट के फैसले में पिछली पोस्टिंग शाला में जॉइनिंग का निर्देश था। लेकिन इस शब्द को लेकर विभाग मूल शाला में ज्वाइनिंग के लिए बाध्य किए जाने के विरोध में शिक्षक केशव कुमार वर्मा, राजेश कुमार कौशिक, देवनारायण यादव, धीरेंद्र कुमार पांडे ने रिट याचिका दायर की।
इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 10 दिनों के भीतर याचिकाकर्ताओं को संशोधित शाला में ज्वाइनिंग देने का निर्देश दिया। इसके साथ ही राज्य सरकार की तरफ से गलत व्याख्या वाले निर्देश को निरस्त कर दिया।