मतगणना के लिए आठ दिन का समय बचने पर अब राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के प्रत्याशियों के चुनाव संचालक बने नेताओं ने बूथ वार समीक्षा शुरू कर दी है। इसमें मुख्य रूप से जातिगत वोटरो की मतदान उपस्थिति का आंकलन चल रहा है। इस बार चुनाव में पुराने मतदाताओं ने कम मतदान किया है। साथ ही इस चुनाव में पहली बार मतदान कर रहे नए मतदाताओं में 80 फीसदी से अधिक ने मतदान किया है। पूर्व में हुए चुनावो में मतदान का विश्लेषण कर अपने वोटरों की संख्या अलग करने वाले नेता भी यह समीक्षा और आंकलन नहीं कर पा रहे हैं उन्हें किन मतदाताओं ने वोट दिया है किन मतदाताओं ने नहीं। इसमें सबसे बड़ी अड़चन नए मतदाता है जिनका मतदान करने का झुकाव किस पार्टी की ओर से यह तय नहीं हो पा रहा है।
भाजपा और कांग्रेस में मंथन जोरों पर: चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों से ज्यादा चुनाव संचालन करने वाले नेता ज्यादा परेशान हैं। अधिकांश प्रत्याशी चुनाव प्रचार और मतदान के बाद खुद विधानसभा क्षेत्रों से बाहर है और परिवार समेत घूम फिर रहे हैं। वहीं उनके संचालक अब जातिगत वोटरों के आंकड़े निकालने में माथापच्ची कर रहे हैं, लेकिन रिजल्ट अब तक नहीं निकाल पाए हैं।
सबसे कम और सबसे अधिक मतदान वाले बूथों पर मंथन: मंथन करने वाले नेताओं के लिए विधानसभा क्षेत्रों में सबसे कम और सबसे अधिक मतदान होने बूथ सबसे ज्यादा परेशानी पैदा कर रहे हैं। 2018 चुनाव में जिन क्षेत्रों से नेताजी ने लीड और पिछड़े थे वहां कम और ज्यादा मतदान हुए हैं। ऐसे में आंकलन नहीं लग पा रहा है कि मतदान पक्ष में हुआ है या विपक्ष में।
नए वोटर 2 लाख 60 हजार से अधिक: जिले की आधा दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव 2018 की अपेक्षा 2023 में 2 लाख 60 हजार से ज्यादा नए मतदाता हैं। इनमें से सभी विधानसभा क्षेत्रों में 15-39 हजार तक मतदाताओं की संख्या बढ़ी है और मतदान में नए वोटरों की संख्या अधिक है। ऐसे में इन्होंने किस पार्टी को वोट दिया है यह सभी नेताओं के लिए सिरदर्द हो गया है।