बता दें कि विशेष न्यायालय से अग्रिम याचिका खारिज होने के बाद पूर्व महाधिवक्ता ने
हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। सीनियर एडवोकेट किशोर भादुड़ी ने पूर्व महाधिवक्ता के पक्ष में तर्क दिए के राज्य शासन ने 2018 में संशोधित नियम लागू किया है। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि महाधिवक्ता की नियुक्ति राज्यपाल ने की है। उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए धारा 17 (ए) के तहत अनुमति जरूरी है। लेकिन, इस केस में सरकार ने कोई अनुमति नहीं ली है और सीधे तौर पर केस दर्ज किया है। साथ ही नान घोटाला वर्ष 2015 का है। इसमें अब एफआईआर दर्ज की गई है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और चैट को भी तीन साल हो चुके हैं। तब सरकार क्या कर रही थी? उन्होंने इस केस को राजनीति से प्रेरित बताते हुए निराधार बताते हुए कहा कि एफआईआर चलने योग्य नहीं है।
यह हैं आरोप
उल्लेखनीय है कि 4 नवंबर को ईओडब्ल्यू, एसीबी ने सतीश चंद्र वर्मा और रिटायर्ड आईएएस डॉ आलोक शुक्ला, अनिल टुटेजा के खिलाफ केस दर्ज किया। आरोप है कि तीनों ने प्रभावों का दुरुपयोग कर गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया है। इसी मामले में 2019 में ईडी ने भी केस दर्ज किया, जिसकी जांच चल रही है। पूर्व महाधिवक्ता पर आरोप है कि उन्होंने तत्कालीन अफसरों के साथ मिलकर आरोपियों को बचाने साजिश की है। यह भी आरोप है कि दोनों आरोपी अफसर और जज के बीच में संपर्क बनाए हुए थे।
ऐसे हुआ था नान घोटाला
छत्तीसगढ़ में नागरिक आपूर्ति निगम के जरिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली संचालित होती है। एंटी करप्शन और आर्थिक अपराध ब्यूरो ने 12 फरवरी 2015 को नागरिक आपूर्ति निगम के मुयालय सहित अधिकारियों-कर्मचारियों के 28 ठिकानों पर एक साथ छापा मारा था। वहां से करोड़ों रुपए की नकदी, कथित भ्रष्टाचार से संबंधित दस्तावेज व डायरी, कप्यूटर की हार्ड डिस्क समेत कई दस्तावेज मिले। आरोप था कि राइस मिलों से लाखों क्विंटल घटिया चावल लिया गया और इसके बदले करोड़ों रुपए की रिश्वत ली गई।