पूर्व में प्रति हेक्टेयर 30 से 25 खेजड़ी के वृक्ष होते थे। अब इनकी संख्या 13 से 15 तक रह गई है। गांव सहित आसपास के गांवों के खेतों एवं सार्वजनिक भूमि पर लगे खेजड़ी के पेड़ अज्ञात रोग से सूखने लगे हैं। किसानों के अनुसार पेड़ों की शाखाएं सूखकर डंठल में तब्दील हो रही है। खेजड़ी को एक कवक व कीट की जुगलबंदी खोखला कर रही है। थोड़े ही समय में टहनियां टूटकर गिरने लगती है, फिर तना भी गिर जाता है।
वन एवं वन्यजीव प्रेमी इसका कारण बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण बता रहे हैं। ऐसे में क्षेत्र में इस वृक्ष की संख्या तेजी से घट रही है। खेजडिय़ों को बचाने के लिए वन विभाग भी कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। ऐसे में यह रोग असाध्य हो सकता है।
ट्रैक्टर की जुताई ने उखाड़ा
पहले हल से जुताई होती थी तो किसान केवल 6 इंच जमीन खोदता था और खेजड़ी दिखने पर हल को पास से निकाल लेता था, लेकिन अब ट्रैक्टर ने जमीन को एक से डेढ़ फीट तक खोदकर खेजड़ी को रोंद दिया।
संजीवनी से कम नहीं
खेजड़ी के महत्व के कारण ही इसे राज्य का कल्पवृक्ष कहा गया है। किसानों व पशुपालकों के लिए तो यह संजीवनी से कम नहीं है। कम पानी व भीषण गर्मी में लहलहाने के कारण हजारों सालों से अकाल के समय पशुओं की जान बचाता आ रहा है। इसकी पत्तियों का उपयोग भेड़ बकरियों के लिए चारे के रूप में करते है। साथ ही इसकी सूखी पत्तियों की खाद अच्छी होती है। इसके अलावा जलावन के लिए लकड़ी का उपयोग भी बहुतायत में किया जाता है।
धार्मिक महत्व भी
साधारण जीवन के अलावा खेजड़ी का धार्मिक महत्व भी कम नहीं है। वेदों में इसे पवित्र शमी वृक्ष कहा जाता है। राज्य में जगह-जगह इसकी पूजा भी की जाती है। बिश्नोई संप्रदाय का आराध्य होने के कारण जोधपुर जिले के ग्राम खेजड़ली में भाद्रपद शुक्ल दशमी को मेला भी भरता है।
औषधि में भी उपयोग
आयुर्वेद में खेजड़ी को वात, पित एवं कफ को नाश करने वाला बताया गया है। आयुर्वेद के अनुसार खेजड़ी की फलियों का सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। इसके अलावा दस्त लगने पर छाछ के साथ इसका उपयोग लाभदायक साबित होता है। खेजड़ी की फलियां आंतों को साफ करने, खेजड़ी की छाल का काढा़ खांसी एवं फेफड़ों की सूजन दूर करने में का काम करती है।
छप्पनियां अकाल में बनी थी भोजन
खेजड़ी का वृक्ष छप्पनियां अकाल में लोगों के लिए भोजन बना था। यह खेजड़ी लोगों के लिए एक जीवनदान सिद्ध हुई थी। इसकी छाल को बारीक बनाकर उसे भोजन के रूप में उपयोग किया था। इसकी कच्ची फलियां सब्जी व अचार बनाने के काम में लेते है। सांगरियों का पंचकूटा में महत्व होता है। बाजार में सांगरी के भाव आसमान छूने लगे हैं।
इनका कहना है
ऐसा खेजड़ी में गाइनोड्रामा या भफोडा़ रोग के संक्रमण के कारण होता है जिससे एक साल में पेड़ सूखकर नष्ट हो जाता है। इस संक्रमण से क्षेत्र में एक दशक में 25 से 30 फीसदी खेजड़ी नष्ट हो चुकी है। इसका उपचार छह् माह में हो सकता है। इसका उपचार 20 से 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल फफूंदनाशक को 20 लीटर पानी में मिलाकर देने तथा फिर एक और पांच माह बाद यहि प्रक्रिया दोहराने से पौधा स्वस्थ हो जाएगा।
ज्योति सहारण, कृषि पर्यवेक्षक, खारा