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बीकानेर

नेपियर घास से निखरेगा गोचर: पौधों को संरक्षण और पशुओं के लिए भरपूर चारा

ग्यारह हजार बीघा में फैले गंगाशहर-सुजानदेसर गोचर भूमि में एक लाख पौधे लगाने के साथ उनके संरक्षण के लिए नेपियर घास (हाथी घास) को लगाया गया है। इससे नए लगे पौधों को संरक्षण मिलेगा। मई-जून की लू में जहां हरा तिनका तक नहीं दिखता, वहां यह हरी-भरी घास पशुओं के पेट भरने के काम आएगी।

बीकानेरMay 08, 2024 / 05:57 pm

dinesh kumar swami

ग्यारह हजार बीघा में फैले गंगाशहर-सुजानदेसर गोचर भूमि में एक लाख पौधे लगाने के साथ उनके संरक्षण के लिए नेपियर घास (हाथी घास) को लगाया गया है। इससे नए लगे पौधों को संरक्षण मिलेगा। मई-जून की लू में जहां हरा तिनका तक नहीं दिखता, वहां यह हरी-भरी घास पशुओं के पेट भरने के काम आएगी। करीब पचास बीघा में घास लगाने का कार्य चल रहा है। इसके बाद दूसरे चरण में फिर पचास बीघा में लगाया जाएगा। यह ऑक्सीजन हब के रूप में विकसित हो रहा है।
गोचर भूमि पर जिला प्रशासन की पहल पर नगर विकास न्यास, नगर निगम एवं वन विभाग मिलकर 2 लाख पौधों का रोपण करवा रहा है। पौधे लगाने के बाद गोचर में घूमने वाले पशुओं और जंगली जानवरों के पौधों को खाने, लू और सर्दी में मौसम की मार से पौधों के सूख जाने की परेशानी आ रही थी। इसके समाधान के रूप में नेपियर घास का उपयोग किया गया है।
आम बोलचाल में हाथी घास के नाम से पुकारी जाने वाली नेपियर घास दस से पन्द्रह फीट तक लम्बाई तक बढवार कर लेती है। साथ ही यह हर साल नई फुटती रहती है। गर्मी के मौसम में यह कच्ची रहती है। मुलायम होने से हरे चारे के रूप में पशु चाव से खाते है। पककर सख्त होने के समय सर्दी का मौसम आ जाता है। ऐसे में यह छोटे पौधों को सर्दी से बचाव करती है।सूरत से मंगवाई, व्यर्थ पानी से उगाई
भागीरथ नंदिनी के अध्यक्ष मिलन गहलोत ने बताया कि करीब डेढ़ वर्ष पूर्व सिटी फॉरेस्ट के फर्स्ट फेज में पांच बीघा भूमि में पौध रोपण किया गया। यहां पास ही एसटीपी प्लांट से शोधित पानी व्यर्थ बहता था। इसका उपयोग पौधों को देने के लिए किया गया। सूरत से नेपियर घास मंगवाकर पौधों की कतार के बीच लगाई गई। अभी पौध रोपण का कार्य लगातार चल रहा है। करीब एक लाख पौधे लगाए जा चुके है। इनमें खेजड़ी, पीपल, नीम, रोहिड़ा, बरगद , बोरटी, इमली, सहजन, शहतूत, जामुन आदि के पौधे शामिल हैं।

उजाड़ भूमि पर हरियाली से रौनक

सुजानदेसर-स्वरूपदेसर रोड पर यूआईटी ने करीब सौ बीघा में पौधों की कई पंक्तियां लगाई है। यह पूरा क्षेत्र उजाड़ था और सूखी और कंटीली झाडि़यां ही नजर आती थी। अब हरियाली और रौनक ऐसी बनी है कि सुबह-शाम बड़ी संख्या में लोग यहां भ्रमण करने आते हैं। पहली पंक्ति में टीकम, बेगनबोलिया, कनीर आदि रंग-बिरंगे एवं सुगंध वाले पौधे लगे है। दूसरी पंक्ति में गुलमोहर तीसरी में शीशम, चौथी में शहतूत, पांचवीं में बिल्व के पौधे है। पीपल, बरगद, खेजड़ी आदि लगाने की योजना चल रही है। दो पौधों के बीच उनके सरंक्षण के लिए नेपियर घास का रोपण होगा।

निराश्रित पशुओं का भरेगा पेट

नेपियर घास की ओट में पौधा प्रतिकूल परिस्थितियों में बचा रहेगा। दस से पन्द्रह साल के जीवन काल में नेपियर घास को साल में तीन से चार बार कटाई कर सकते है। निराश्रित पशुओं काे पेट भरने के लिए भरपूर चारा मिल जाएगा। सड़कों पर भटक रहे पशु गोचर में स्थाई रूप से अपना ठिकाना बना लेंगे।

आठ एमएलडी गंदा पानी पहुंच रहा

गोचर के पास में ही एसटीपी प्लांट लगे है। जहां बीकानेर शहर से निकलने वाला करीब 7-8 एमएलडी गंदा पानी पहुचंता है। इसे शोधित कर उपयोग गोचर में लिया जा रहा है। रियासत काल में भीनासर गोचर के लिए करीब पांच हजार बीघा एवं गंगाशहर-सुजानदेसर क्षेत्र में करीब छः हजार बीघा भूमि छोड़ी हुई है।

बहुउपयोगी साबित होगी घास

कृषि वैज्ञानिक डॉ. इन्द्र मोहन वर्मा के अनुसार नेपियर घास नमी वाली जमीन में आसानी से पनपती है। पशुओं के खाने के लिए चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। वर्ष में तीन से चार बार कटाई कर सकते है। खारे पानी में भी उग जाती है। नहरी क्षेत्र और सेम ग्रस्त क्षेत्र में इसे ज्यादा बोया जाता है।

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