गौरतलब है कि फायरिंग रेंज की स्थापना के लिए रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 1984-85 में महाजन क्षेत्र के 34 गांवों की भूमि को अधिग्रहित किया था। एक साथ 34 गांव उठाकर यहां के बाशिंदों को घर, पेड़, कृषि भूमि सहित अन्य सभी चीजों का मुआवजा वितरण किया गया था। ग्रामीणों को खाजूवाला, दंतौर, पूगल, मोहनगढ़, नाचना आदि की तरफ कृषि भूमि का आवंटन भी किया गया, लेकिन तमाम सुविधाओं के बाद भी बीते करीब 37 सालों में ग्रामीण अपने उजड़े आशियानों को नहीं भूल पाए हैं।थेह बने
मकानों को देखकर छलकता है दर्द
भोजरासर, कुम्भाणा, मोटलाई, खानीसर, ठोईयां, मणेरां, दुदेर सहित अन्य गांवों को उजड़े 35-36 साल बीत जाने के बाद इन गांवों में आज भी थेह बनते पुराने मकान अपना अस्तित्व बयां कर रहे हैं। इन गांवों में बने लोकदेवताओं के मंदिरों पर आज भी विशेष तिथियों पर मेलों का आयोजन होता है। मंदिरों पर जाने के बहाने ग्रामीण अपनी पुरानी यादों को ताजा करते है। भोजरासर से आकर महाजन में बसे राजूराम शर्मा बताते है कि इन गांवों में राम रमता था। भूमि जहां उपजाऊ थी वहीं लोगों में भाईचारे की भावना थी। अच्छा जमाना होता था। प्रत्येक घर में पशुधन का पोषण किया जाता था। हालांकि आज भोजरासर में मकान थेह बन चुके है। इसी प्रकार पत्रिका से बात करते हुए कुम्भाणा निवासी व्यवसायी बजरंगलाल लखोटिया बताते है कि आज भी होली पर्व पर कुम्भाणा में होलिका का दहन करने की परम्परा का निर्वहन होता है। बमों की परवाह किए बिना कुम्भाणा से अन्य जगह पर जाकर बसे सैकड़ों लोग होली के दिन रेंज में पहुंचते है।
सेना के सहयोगी बने है मकान
फिलहाल रेंज एरिया में खण्डहर बन चुके मकान सेना के लिए बड़े कारगर सिद्ध हो रहे है। समय-समय पर होने वाले युद्धाभ्यास में इन मकानों को काल्पनिक दुश्मन के ठिकाने मानकर बम व गोलियां बरसाई जाती है। अमेरिका, रूस, फ्रांस आदि के साथ होने वाले युद्धाभ्यास में ये मकान महत्ती भूमिका अदा करते है। हालांकि इन मकानों में आज जीवन शून्य है फिर भी बिना किसी देखभाल व मरम्मत के आज भी बमों व गोलियों के साथ मौसम की मार को सहतेे हुए मकान अपनी जीवटता का प्रमाण दे रहे है।