बीकानेर से 80 किमी की दूरी गुरु जम्भेश्वर ने जहां प्रकृति और जीव रक्षा का दुनिया को संदेश दिया, उसी समराथल धोरे के पास गुरु महाराज के नाम पर इस गोशाला का संचालन 1999 से हो रहा है। आज यहां 1700 से ज्यादा गोवंश है। सभी गोवंश देखभाल की जरूरत वाले हैं। बीमार, बांझपन के शिकार, नेत्रहीन या दूध नहीं देने पर मालिक के दुत्कारे हुए हैं। गोशाला के गोपाल शिवकुमार बताते हैं कि गोशाला में जैसे ही कोई नई गाड़ी आती है तो उसकी आवाज से यह पहचान लेती है। बाड़े में इंसानों की बातचीत इनके कानों में पड़ते ही यह दिन-रात देखभाल करने वाले और नए व्यक्ति में अंतर कर लेती है। गंध को लेकर गायें इतनी संवेदनशील है कि चारा या कुछ भी खाने की वस्तु ठाण में डालते ही तुरंत खाने के लिए वहां पहुंच जाती है।
एक-एक कर बढ़ता गया नेत्रहीन गोवंश
गोशाला अध्यक्ष कृष्ण सिंगड़ ने बताया कि वर्ष 1999 में बेसहारा गायों की देखभाल के उद्देश्य से गोशाला की शुरुआत की। एक पशु एम्बुलेंस भी है। जहां से भी सड़क दुर्घटना में घायल या बीमार गोवंश होने की सूचना मिलती है, गाड़ी से उसे गोशाला ले आते हैं। पालतु गायों के अंधे बछड़े-बछड़ी का जन्म होने पर मालिक उसे गोशाला सौंप जाते हैं। कुछ नेत्रहीन गायों को भी यहां छोड़कर जाते हैं। 25 साल में ढाई सौ से ज्यादा गोवंश हो गया है। इनकी देखभाल में 24 लोग लगे हुए हैं। यह भी पढ़ें