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भोपाल

मां नर्मदा को सौंप दिया हरसूद, वो मरा नहीं, हमारे दिलों में आज भी है जिंदा

कई धर्मों के लोगों के आस्था के केंद्र मंदिर, मस्जिद और ईदगाह खंडहर हो गए थे। लेकिन, लोगों के सीने में आज भी जिंदा है हरसूद की यादें। जन्म भूमि से बिछड़ने का दर्द। कई लोग इसे सोशल मीडिया पर बयां कर रहे हैं।

भोपालJun 30, 2017 / 04:05 pm

Manish Gite

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भोपाल। कभी सैकड़ों इमारतों से सजा रहता था मध्यप्रदेश का हरसूद शहर। सात सौ साल पुरानी अमिट यादें अपने आप में समेटे यह शहर अब दुनिया के नक्शे से गायब है। 30 जून 2004 को ही यह शहर पानी में डूब गया था।

कई धर्मों के लोगों के आस्था के केंद्र मंदिर, मस्जिद और ईदगाह खंडहर हो गए थे। लेकिन, लोगों के सीने में आज भी जिंदा हैं हरसूद की यादें। जन्म भूमि से बिछड़ने का दर्द। कई लोग इसे सोशल मीडिया पर बयां कर रहे हैं। हर कोई बोल रहा है कि हरसूद मरा नहीं, वो हमारे दिलों में जिंदा है। उसे हमने मां नर्मदा को सौंप दिया है।

नर्मदा नदी पर बने इंदिरा सागर की गहराइयों में यह शहर भले ही मर गया है लेकिन लोगों के दिलों में इसकी यादें अमर हो गई हैं। जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेंगी।



700 वर्षों से था अस्तित्व
हरसूद को 13वीं शताब्दी के आसपास राजा हर्षवर्धन ने बसाया था। हर्षवर्धन के कार्यकाल में यह उनकी राज्य की राजधानी भी थी। ऐसा इतिहास के पन्नों में उल्लेख मिलता है। अब यह शहर पानी में डूब गया है। लेकिन, डूबने से पहले इसके हजारों लोगों को खंडवा के पास छनेरा में बसा दिया गया था। यह एशिया का सबसे बड़ा विस्थापन माना जाता है।


भोपाल से 200 किलोमीटर दूर था हरसूद कस्बा
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब दो सौ किलोमीटर दूर था हरसूद कस्बा। कस्बे के लोग छनेरा, खिरकिया, हरदा, खंडवा, इंदौर और भोपाल तक बसते चले गए। हालांकि यहां के लोगों को विस्थापन से पहले मुआवजा भी दिया था। लेकिन वो नाकाफी ही रहा। आज भी हरसूद की हाबोहवा में पले-बढ़े लोग अपने कस्बे को याद करते हैं तो उनके मन में एक दर्द का भाव उमड़ पड़ता है, उनकी यादे हरी हो जाती हैं।

सवा लाख लोग हुए थे विस्थापित
हरसूद शहर के डूब में आने से पहले करीब सवा लाख से अधिक लोगों को अपने ही घरों से बाहर कर दिया गया था। यह एशिया का सबसे बड़ा विस्थापन कार्य था। इस डूब में हरसूद के साथ ढाई सो गांव के बाशिंदे भी आ गए।

दुनियाभर में हुआ था विरोध
31 जनवरी 1989 को सरदार सरोवर बांध बनने का विरोध भी हुआ था। इस आंदोलन में पर्यावरण के लिए काम करने वाले बाबा आमटे, सुंदरलाल बहुगुणा, शिवराम कारन्त, स्वामी अग्निवेश, मेघा पाटकर और शबाना आजमी जैसी हस्तियों ने भी विरोध किया था।

यह भी है खास
-नए हरसूद (छनेरा) पांच हजार लोगों को बसाने की योजना थी, लेकिन करीब 23 सौ परिवार ही पहुंचे। लोगों को सपना दिखाया गया था कि छनेरा को चंडीगढ़ की तर्ज पर बसाया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो काफी लोग अलग-अलग शहरों में बस गए। लोगों को मकान के स्थायी पट्टे भी नहीं दिए गए।

आज भी नम होती हैं आंखें
हरसूद उजड़ जाने के बाद अलग-अलग शहरों में बस गए लोगों की आंखें 30 जून को नम हो जाती है। कई लोग पुराने हरसूद की तरफ अपनी यादें ताजा करने चले आते हैं। यहां सब कुछ उजाड़ है और बहुत कुछ पानी में डूबा हुआ है। कई बुजुर्ग अपने बच्चों को पुराने हरसूद का भूगोल समझाते नजर आते हैं। 

हरसूद को डूबते अपनी आंखों से देखकर अब भोपाल में रह रहे अरविंद शर्मा भी उन लोगों में से हैं जो अपनी यादों को नहीं भूलना चाहते। उन्होंने फेसबुक पर अपने पूर्वजों की हरसूद को याद किया है। वहां बिताए बचपन के दिनों को याद किया है।


यहां देखें अरविंद शर्मा की फेसबुक पोस्ट….।
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