हमीदिया अस्पताल में बीते सप्ताह एचआईवी पॉजीटिव मरीज की मौत के बाद पोस्टमार्टम किया गया। जानकारी के मुताबिक मेडिकोलीगल संस्थान ने मरीज का पोस्टमार्टम करने से इंकार कर दिया। संस्थान का तर्क था कि एचआईवी संक्रमित शव का पोस्टमार्टम नहीं किया जाता, लेकिन पुलिस ने दवाब बना कर पोस्टमार्टम करवा लिया। घटना के बाद पत्रिका ने जब मामले की पड़ताल की तो चौंकाने वाले जानकारी सामने आई।
जानकारी के मुताबिक हमीदिया अस्पताल की मर्चुरी में होने वाले 70 फीसदी पोस्टमार्टम गैरजरूरी होते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक पुलिस दवाब बना कर अक्सर ऐसे मामलों में पोस्टमार्टम करवाती है, जिसकी मृत्यु का कारण डॉक्टर से लेकर परिवार सबको पता होता है। मालूम हो कि प्रदेश में हुई कोई भी बढ़ी घटना के बाद गांधी मेडिकल कॉलेज स्थित मेडिकोलीगल संस्थान में ही पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है। लेकिन यहां पहले से ही पोस्टमार्टम की संख्या इतनी ज्यादा है कि कई महत्वपूर्ण मामलों की रिपोर्ट महीनों पेंडिंग हो जाती है।
देश के कई राज्यों में गैरजरूरी पोस्टमार्टम पर रोक है, लेकिन हमारे यहां ऐसा नहीं है हम उन मामलों में भी पोस्टमार्टम करते हैं, जिसका कारण सबको पता है। संस्थान में चार साल से चार पद खाली हैं, शासन उन्हें भी नहीं भर रहा। ऐसे में पोस्टमार्टम की संख्या में ज्यादा होने से डॉक्टरों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। – डॉ. अशोक शर्मा, डायरेक्टर मेडिकोलीगल संस्थान, भोपाल
पोस्टमार्टम जरूरी नहीं
मेडिकोलीगल डिपार्टमेंट से मिली जानकारी के मुताबिक वो सभी मामले जिसमें डॉक्टरों को मृत्यु का कारण पता हो, वहां पोस्टमार्टम करना जरूरी नहीं है। करंट से मृत्यु हो तो पोस्टमार्टम जरूरी नहीं है। इसी प्रकार खुदकुशी, दुर्घटना, सांप के काटने, जलने के साथ हेड इंजुरी जैसे मामलों में पोस्टमार्टम की जरूरत नहीं होती।
ये हो रहा है असर
मर्चुरी में मेडिकोलीगल संस्थान के साथ गांधी मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक डिपार्टमेंट मिलकर पोस्टमार्टम करते हैं। हालांकि दोनों ही विभाग डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं। जबकि मर्चुरी में हर रोज 15 से 20 शव पोस्टमार्टम के लिए आते हैं। ऐसे में कई बार ऐसा होता है कि एक डॉक्टर को एक दिन में 15 पोस्टमार्टम तक करने पड़ते हैं।
तीन पोस्टमार्टम आदर्श, कर रहे 15
फॉरेंसिक साइंस के नियमों के मुताबिक एक डॉक्टर आदर्श स्थिति में एक ड्यूटी टाइम में तीन शवों का पोस्टमार्टम कर सकता है। लेकिन हमीदिया अस्पताल में एक डॉक्टर एक दिन में 10 से 15 पोस्टमार्टम तक करता है। ऐसे में पोस्टमार्टम की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
सुप्रीमकोर्ट ने भी कहा, शवों का सम्मान करो
कुछ साल पहले वर्धा विवि महाराष्ट्र के फॉरेंसिक विभाग ने गैरजरूरी पोस्टमार्टम का मुद्दा उठाया था। इस मुद्दे पर सुप्रीमकोर्ट में भी बहस हुई। सुप्रीम कोर्ट ने शवों के सम्मान की बात करते हुए गैरजरूरी पोस्टमार्टम पर रोक लगाई थी। इस निर्णय के बाजवजूद मप्र में इसपर कोई अमल नहीं होता।
दो मामले जहां गैर-जरूरी पीएम हुए
01. गणेश विसर्जन के दौरान तालाब में डूबने से 11 लोगों की मौत हो गई थी। सभी को मौत का कारण पता होने के बावजूद पुलिस ने पोस्टमार्टम कराया। डॉक्टरों ने भी महज 45 मिनट में सभी पोस्टमार्टम कर रिपोर्ट दे दी। रिपोर्ट मौत का कारण फेफड़ों में पानी भरना बताया गया।
02. बीते साल दिसंबर में बुदनी के पास एक बस दुर्घटना में पांच यात्रियों की मौत हो गई। सभी को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। चिकित्सकों ने कहा कि इन्हें पोस्टमाटर्म की जरूरत नहीं है, लेकिन पुलिस नहीं मानी। अंतत: सभी की रिपोर्ट में एक्सीडेंट से मौत होना बताया गया।
केवल तीन डॉक्टरों के भरोसे चल रहा संस्थान
मेडिकोलीगल संस्थान में मात्र तीन मेडिकल ऑफिसर और एक सीनियर फॉरेंसिक ऑफिसर है। मजे की बात यह है कि चारों ही महिला चिकित्सक है। इनमें भी एक अधिकारी अगले साल रिटायर होने वाली हैं, वहीं दूसरी अधिकारी अपने रसूख का इस्तेमाल कर पोस्टमार्टम नहीं करतीं। ऐसे में मेडिकोलीगल संस्थान और फॉरेंसिक डिपार्टमेंट मिलकर पोस्टमार्टम करते हैं।