भोपाल। शहर विकास का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव हबीबगंज रेलवे ओवर ब्रिज अब बन कर पूरी तरह तैयार है। सोमवार को ब्रिज पर लगे सारे सपोर्ट हटा दिए गए। नवंबर 2011 में जब इस ब्रिज का शुरू किया गया उस समय डिजाइनिंग से अंतिम निर्माण तक कई सारी चुनौतियां उभर कर सामने आई थीं। पर पांच साल में इन चुनौतियों से पार पाकर कुछ लोगों ने ब्रिज को शुरू करने के पड़ाव तक ला ही दिया। इस ब्रिज को आकार देने में जिन लोगों की सोच महत्वपूर्ण रही। ये रियल हीरोज हमेशा याद किए जाते रहेंगे। पत्रिका ने सोमवार को इन रियल हीरोज से बात की और ब्रिज के निर्माण में आई चुनौतियों और उनसे आगे निकलकर ब्रिज को आकार देने तक के संघर्ष को जाना। आरओबी पर ही था मेरा ऑफिस नाम : अवधेश दुबे रोल: सहा.इंजीनियर चुनौती : प्रोजेक्ट शुरू होने से खत्म होने तक मेरी ड्यूटी सिर्फ आरओबी पर थी। लोकल होने के चलते मुझे एनसीसीएल कंपनी के साथ कोऑर्डिनेशन करने कहा गया था। दुर्गा नगर के लोग जमीनें जाने से काफी नाराज थे । प्रशासन ने काफी मदद की और आखिर जगह खाली करा ली गई। तीन साल से आरओबी ही ऑफिस है। बरसों से दो ब्रिज पर बीत रही जिंदगी नाम : ओपी गुप्ता रोल: सहा.इंजीनियर चुनौती : आरओबी के साथ केबल स्टे ब्रिज की मॉनिटरिंग बड़ी चुनौती रही। दिन में तीन बार आरओबी और दो बार केबल स्टे ब्रिज की रिव्यू मीटिंग के लिए हबीबगंज और बड़ा तालाब के बीच चक्कर लगाना ही अब दिनचर्या बन गया है। अब कोई परेशानी नहीं आती है। लगा जैसे खुद का मकान बना रहे हैं नाम : एसएन दुबे रोल: सहा.इंजीनियर चुनौती : कंसलटेंट के डिजाइन पर रेलवे जैसे दूसरे संस्थानों से सहमति हासिल करने में खुद का मकान बनाने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। एक बार तो महापौर को पूरी एमआईसी के साथ डीआरएम कार्यालय आना पड़ा। तब गर्डर लॉन्चिंग की अनुमति मिली। सिक्स लेन ब्रिज बनाना थी बड़ी चुनौती नाम : आईबी राजू रोल : प्रोजेक्ट मैनेजर, एनसीसीएल चुनौती : एमपी के पहले सिक्स लेन ब्रिज को तैयार करना बड़ी चुनौती थी। कई सालों से ब्रिज को पूरा करने की धुन में समय कब बीत गया पता नहीं चला। बच्चों के स्कूल खत्म हो गए वो कॉलेज जाने वाले हैं। अब कुछ समय उनके साथ गुजारेंगे। चार हिस्सों में काम करती थी हमारी टीम नाम : आसित राउत रोल: ब्रिज इंजीनियर, एनसीसीएल चुनौती : डिजाइन और एलाइनमेंट की निगरानी का काम था। टीम चार हिस्सों में काम करती थी। गणेश मंदिर, फ्रेक्चर अस्पताल, एम्स और होशंगाबाद रोड की मॉनीटरिंग में रात कब हो जाती थी पता हीं नहीं चलता था। डिजाइन के लिए सात बार गया दिल्ली नाम : मनीष कोटपल्लीवार रोल : प्रबंधक, एसएन भोवे कंसलटेंसी चुनौती : डिजाइन बदलने के बाद दिल्ली को नया डिजाइन पसंद नहीं आ रहा था। 7 बार दिल्ली का टिकट कटवाया । कॉलम के गड्डे खोदने से लेकर गर्डर लॉन्चिंग तक हर मूवमेंट की लाइव निगरानी किसी चुनौती से कम नहीं था। मॉर्निग वॉक से शुरू होती थी मीटिंग नाम : ओपी भारद्वाज रोल : सिटी इंजीनियर चुनौती : काम शुरू होते ही दुर्गा नगर के विस्थापितों को हटाने की बाधा सामने आ गई। मैंने अपनी गाड़ी में बिठाकर लोगो को सरकारी मकान दिखाए ताकि वो जाने के लिए तैयार हो जाएं। मॉर्निंग वॉक के बहाने मौके पर आकर दिन प्रतिदिन के काम की समीक्षा जीवन का हिस्सा बन चुकी है।