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भोपाल

मध्य प्रदेश की कुल आबादी का 72 फीसदी के आजीविका का मुख्य स्रोत है खेती

राष्ट्रीय किसान दिवस पर विशेष:
– प्रदेश में कुल किसानों की संख्या लगभग 100 लाख यानी 1 करोड़ है- इसमें 1 हैक्टेयर तक जोत सीमा वाले सीमांत किसान 38 लाख 91 हजार हैं- लघु किसान जिनकी जोत सीमा 1 से दो हैक्टेयर के बीच है, उनकी संख्या 24 लाख 49 हजार है

भोपालDec 23, 2022 / 11:39 pm

shyam singh tomar

मध्य प्रदेश की कुल आबादी का 72 फीसदी के आजीविका का मुख्य स्रोत है खेती

भोपाल. मध्य प्रदेश की जनसंख्या 07.26 करोड़ (जनगणना-2011 के अनुसार) है। इस आंकड़े के हिसाब से हमारा देश में पांचवा स्थान है। राज्य की कुल आबादी का 72 फीसदी आबादी ग्रामीण है, जिसकी आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि है। मध्य प्रदेश में कुल किसानों की संख्या लगभग 100 लाख यानी 1 करोड़ है। इसमें 1 हैक्टेयर तक जोत सीमा वाले सीमांत किसान 38 लाख 91 हजार हैं। वहीं लघु किसान जिनकी जोत सीमा 1 से दो हैक्टेयर के बीच है, उनकी संख्या 24 लाख 49 हजार है। प्रतिशत के हिसाब से प्रदेश में 48.3 प्रतिशत सीमान्त कृषक हैं जबकि 27.15 प्रतिशत लघु कृषक हैं। मध्य प्रदेश भारत में सबसे अधिक सोयाबीन उत्पादन वाला राज्य है। राष्ट्रीय स्तर पर चना, गेहूं, अरहर, सरसों, लहसुन, धनिया, टमाटर, कुल दलहन और कुल तिलहन में भी राज्य का स्थान अग्रणी उत्पादक प्रदेशों में शामिल है।
देश के खाद्यान्न उत्पादन में मध्य प्रदेश का प्रतिशत 7.7 है

मध्य प्रदेश जलवायु परिस्थितियों, मिट्टी और फसलों के विविध पैटर्न के लिहाज से भी संपन्न राज्य है । इस वजह से इसके भूमि क्षेत्र को 11 कृषि जलवायु क्षेत्रों में बांटा गया है। पिछले कुछ दशकों में राज्य की कृषि के क्षेत्र में प्रगति तेज है, जिसकी बदौलत यहां की खाद्यान्न उत्पादन क्षमता दोगुनी हो गई है। सूबे का योगदान देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन का 7.7 प्रतिशत है। इसी तरह से दलहन और तिलहन उत्पादन में भी क्रमश: 24 प्रतिशत और 25 प्रतिशत योगदान देने के साथ मध्य प्रदेश देश में पहले स्थान पर रहा है ।
प्रदेश में 49 फीसदी जमीन खेती योग्य, लेकिन सिंचाई के लिए 85.6 प्रतिशत वर्षा पर निर्भर

मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। प्रदेश की कुल जनसंख्या का 70 से 72 फीसदी भाग कृषि पर निर्भर है। राज्य की करीब 49 प्रतिशत जमीन खेती योग्य है। कुल कृषि उत्पादन का 83 प्रतिशत भाग खाद्य भाग खाद्य फसलों से होता है। इसमें सिंचित भूमि का क्षेत्रफल कुल बुआई क्षेत्रफल का 14.4 प्रतिशत है। शेष 85.6 प्रतिशत वर्षा पर निर्भर है। भू-संरचना, मिट्टी, तापमान और वर्षा की भिन्नताओं के कारण यहां पैदा होने वाली फसलों में भी विविधता पाई जाती है। मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से दो प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। ये हैं- खरीफ की फसल और रबी की फसल। आजकल गर्मियों में मूंग, उड़द की खेती का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है। गर्मी की फसल को जायद की फसल भी कहते हैं। किसानों को मानना है कि आर्थिक दृष्टि से यह बोनस की फसल है।
कृषि विभाग ने प्रदेश में खेती यानी फसलों के उत्पादन के हिसाब से पांच क्षेत्रों में विभाजित कर रखा है।

1. उत्तर में ज्वार-गेहूं का क्षेत्र-
इसके तहत मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, भिण्ड, दतिया, छतरपुर और टीकमगढ़ जिले आते हैं। इसका विस्तार छिंदवाड़ा तथा बैतूल में भी है।
2. मध्यप्रदेश में गेहूं का क्षेत्र-
इसमें नर्मदापुरम, दमोह, भोपाल, इंदौर, सीहोर, नरसिंहपुर, रायसेन, विदिशा और सागर जिले शामिल हैं।

3. पश्चिम में काली मिट्टी वाला मालवा प्रदेश-
इसमें इंदौर, खण्डवा, खरगोन, मंदसौर, रतलाम, झाबुआ, धार, देवास, उज्जैन, राजगढ़, शाजापुर आदि शामिल हैं। इसके अंतर्गत आने वाले जिलों में ज्वार व कपास की फसलों की प्रधानता है।
4. पूर्व में चावल का क्षेत्र –
इसमें जबलपुर, मंडला, रीवा, सीधी, शहडोल और बालाघाट जिले शामिल हैं। रायसेन, सीहोर समेत अन्य कई जिलों में धान की खेती के प्रति किसानों की रुचि बढ़ रही है। इसका कारण धान का उत्पादन अधिक होना और किसानों को अच्छे दाम मिलना है।
5. चावल-गेहूं का प्रदेश-
यह उत्तर में पन्ना, सतना, जबलपुर और सिवनी के दक्षिणी हिस्से तक एक पेटी के रूप में फैला है। इस क्षेत्र की जलवायु अधिक वर्षा और अधिक गर्मी वाली है, जो अनाज की फसलों के लिए अच्छी मानी जाती है।

सूबे के करीब 40 फीसदी हिस्से में होती है गेहूं की फसल

गेहूं मध्य प्रदेश की प्रमुख फसल कही जा सकती है। दोनों फसल मौसम में बोई जाने वाली फसलों में गेहूं का रकबा सबसे ज्यादा है। यह फसल कीट-बीमारी से सुरिक्षत और मौसम की मार को काफी हद झेल पाती है। प्रदेश में तकरीबन 55 से 65 लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की खेती की जा रही है। गेहूं की खेती उसी क्षेत्र में होती है, जहां बारिश का औसत 75 से 125 सेंटीमीटर होता है। जहां वर्षा कम होती है, वहां सिंचाई के माध्यम से भी गेहूं की फसल ली जाती है। दो से छह बार सिंचाई में अच्छा उत्पादन देने वाली कई किस्मों की उपलब्धता ने गेहूं की खेती को लोकप्रिय बनाया है। विगत वर्षों में प्रदेश सरकार द्वारा गेहूं के लिए दिए गए बोनस, भावांतर और समर्थन मूल्य ने भी इस खेती को लाभकारी बनाने में कसर नहीं छोड़ी है। मध्यप्रदेश में गेहूं अक्टूबर-नवंबर में बोया जाता है तथा मार्च-अप्रैल में फसल काट ली जाती है। गेहूं की खेती प्रदेश के पश्चिमी भाग में ज्यादा होती है। राज्य के मैदानी क्षेत्रों में ताप्ती, नर्मदा, तवा, गंजाल, हिरण आदि नदियों की घाटियों और मालवा के पठार की काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में गेहूं पैदा किया जाता है। प्रदेश के अधिकतर जिलों नर्मदापुरम, भोपाल, सीहोर, विदिशा, जबलपुर, गुना, सागर, ग्वालियर, निमाड़, उज्जैन, इंदौर, रतलाम, देवास, मंदसौर, झाबुआ, रीवा और सतना जिलों में गेहूं का उत्पादन मुख्य रूप से होता है।
देश के कुल सोयाबीन उत्पादन का 50 प्रतिशत अकेले मध्य प्रदेश में
देश में जितना सोयाबीन पैदा होता है, उसका 50 प्रतिशत भाग अकेले मध्यप्रदेश में होता है। इसी वजह से मध्य प्रदेश को सोयाबीन प्रदेश के नाम से भी जाना जाता रहा है। हालांकि अतिवृष्टि या अनावृष्टि के चलते पिछले कुछ सालों में सोयाबीन का उत्पादन प्रभावित होता रहा है। राज्य में इसके प्रमख क्षेत्रों में इंदौर, धार, उज्जैन, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, सिवनी, भोपाल, गुना, शाजापुर, आगर और रतलाम जिले हैं। मध्य प्रदेश के बाद अब राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र जैसे राज्य भी सोयाबीन की खेती में आगे आए हैं।
धान का क्षेत्रफल भी है 22.5 प्रतिशत
मध्य प्रदेश की दूसरी महत्वपूर्ण फसल धान है, जिसे 22.5 प्रतिशत क्षेत्रफल में उगाया जा रहा है। अगर रकबे के हिसाब से गणना की जाए तो प्रदेश में धान लगभग 28 से 30 लाख हैक्टेयर में बोया जा रहा है। प्रदेश से धान का कटोरा छत्तीसगढ़ छिन जाने के बाद यह प्रगति काफी उम्दा है। यह अधिक नमी में होने वाली फसल है। यह फसल उन्हीं हिस्सों में अधिक होती है, जहां औसतन वार्षिक वर्षा 100 से 125 सेंटीमीटर है। इसी तरह से इसकी पैदावार के लिए हल्की लाल व पीली मिट्टी उपयुक्त है। इसी वजह से यह फसल मानसून की शुरुआत में बोई जाती है और अक्टूबर-नवंबर माह में काट ली जाती है। मध्य प्रदेश के बालाघाट, मण्डला, सीधी, छिंदवाड़ा, बैतूल, रीवा, सतना आदि जिलों में धान की खेती होती है। बालाघाट में पैदा होने वाले परंपरागत धान की किस्म चिन्नौर का पेटेंट हाल ही में हासिल किया गया है। हालांकि बासमती धान पर अभी भी प्रदेश का दावा सिद्ध होने की लड़ाई जारी है।

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