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भोपाल

MP Elections 2023: विधानसभा चुनाव के 4 दिनों में ही उड़ा दिए 40 लाख रुपए

mp elections 2023- बागी और रूठे कार्यकर्ताओं ने बढ़ाया उम्मीदवारों का खर्च, सीमा से 5 गुना ज्यादा…>

भोपालNov 15, 2023 / 12:36 pm

Manish Gite

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मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव खर्च में अब तक के सबसे महंगे चुनाव की ओर बढ़ रहा है। पत्रिका ने प्रत्याशियों के चुनाव खर्चे की पड़ताल की तो चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। जो एक दिन में 10 लाख रुपए से ज्यादा खर्च कर रहे हैं। यानी, चुनाव आयोग से तय 40 लाख रुपए की सीमा तो चार दिन में ही पार कर ली। इस हिसाब से प्रदेश की 230 सीटों में हर सीट पर तीन गंभीर प्रत्याशी हैं, जो मोटी रकम खर्च कर रहे हैं। इन प्रत्याशियों का एक दिन का ही खर्च 70 करोड़ से ज्यादा है, जबकि सप्ताहिक चुनाव खर्च के हिसाब में प्रत्याशी 15-20 हजार रुपए ही बता रहे हैं। आयोग के अनुसार एक दिन का इनका खर्च 11.50 करोड़ बैठता है।

 

सबसे ज्यादा खर्च वाहन व ईंधन पर है। चुनाव कार्यालयों के प्रबंधन और खाने-पीने में मोटी रकम जा रही है। आयोग को जो खर्च प्रत्याशियों ने बताया, वह 20 गुना ज्यादा है। कार्यकर्ताओं के वाहनों के किराये और ईंधन पर रोज 5 लाख खर्च हो रहे हैं। प्रचार के लिए हर प्रत्याशी को 24 दिन मिले हैं। वास्तविक खर्च का आकलन करें तो सवा से दो करोड़ तक खर्च होंगे। आरक्षित सीटों पर सामान्य की तुलना में कम खर्च हो रहा है। खर्च कम दिखाने के लिए प्रत्याशी अलग जतन कर रहे हैं। चुनाव में चाहे लग्जरी गाडिय़ां दौड़ रही हैं, पर अनुमति ई रिक्शा और जीप जैसे वाहनों की ही ले रखी है।

 

भोपाल में ऐसे सामने आया आकलन

खर्च सीमा: 40 लाख
रोज अनुमानित खर्च: 1.50 से 1.70 लाख
जानकारी दी: 15 से 25 हजार रुपए प्रतिदिन
खर्च कर रहे: 3 लाख रुपए तक रोज

 

औसतन 5 लाख रोज खर्च का हिसाब नहीं
रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने पर: 1 लाख औसतन रोज
कार्यकर्ता और प्रचारकों के लिए पार्टी-मनोरंजन: 01 लाख रोज
कच्ची बस्तियों में त्योहारी बांटने, शराब खर्च: 2 लाख रोज
प्रचारकों पर: रोज 1 लाख

 

यह हैं आयोग के नियम

चुनाव आयोग से खर्च की सीमा तय है। विधानसभा चुनाव में 40 लाख तक खर्च किया जा सकता है। ज्यादा पर कार्रवाई हो सकती है। 40 लाख में से नकद सिर्फ 10 हजार ही खर्च किए जा सकते हैं। बाकी ट्रांजेक्शन ऑनलाइन होगा। आयोग ने खर्च के लिए बैंक खाता खोलने का निर्देश दिया है। इसी खाते से चुनाव संबंधी खर्च होंगे। आयोग से दिए रजिस्टर में खर्च से जुड़ी जानकारी व सभी रसीदें भी होनी जरूरी हैं।

 

ऐसे झोंक रहे धूल
ई-रिक्शा से भी प्रचार कर रहे

प्रत्याशियों ने आयोग को भेजे गए विवरण में वाहनों के डीजल-पेट्रोल के खर्च को दिखाया है। कुछ प्रत्याशियों ने ई-रिक्शा को भी प्रचार में उपयोग किया है। इसके बाद बोलेरो, स्कॉर्पियो जैसे वाहनों के खर्च जोड़े गए हैं। 

 

चाय के साथ मंगोड़े का खर्च ज्यादा

लगभग हर प्रत्याशी ने कार्यकर्ताओं को नाश्ते में चाय के साथ मंगोड़े खिलाने का खर्च दिखाया है। नरेला विधानसभा के प्रत्याशी ने नाश्ते के अलावा टोपी-गमछे बांटने का विवरण भी भेजा है।

 

प्रत्याशी ने खरीदे 23 हजार के पटाखे

दक्षिण पश्चिम से एक प्रत्याशी ने 23 हजार रुपए के पटाखे का खर्च दिया है। वाहन पर एलईडी खर्च भी दिखाया है, जबकि इनके प्रतिद्वंद्वी ने सोफे, कवर, मेज, कुर्सी, कारपेट, कटआउट, टेंट पर सर्वाधिक खर्च किया है। इसी तरह दूसरी विधानसभा के प्रत्याशी ने 56 हजार के पटाखे बांटे हैं, जबकि वास्तविक खर्च 20 गुना से भी ज्यादा है।

 

इंदौर: दिखाने को छोटे किए चुनाव कार्यालय

पहले जैसे बड़े चुनाव कार्यालय न तो नजर आ रहे हैं, न ही ज्यादा झंडे, बैनर पोस्टर और होर्डिंग हैं। प्रत्याशियों ने चुनाव कार्यालय के लिए खुली जमीन या दुकानें किराए पर ली हैं। इनमें कार्यालय खोले हैं। कई जगह पर एकड़ों में मौजूद जमीन का कुछ हजार रुपए में अनुबंध किया पर कार्यालय कुछ वर्गफीट में ही बनाया है। पत्रिका ने खर्च देखने प्रत्याशी की स्थिति देखी। इस दौरान रोजाना प्रत्याशी को 55343 रुपए का खर्चा आ रहा है। 1,02,600 रुपए ऐसी सामग्री पर खर्च हुई, जो एक बार का खर्च है। एक प्रत्याशी ने 5000 वर्गफीट में वाटर प्रूफ टेंट में दफ्तर खोला था। खर्च 75,000 रोज था। 20 दिन का खर्च 15 लाख आ रहा था। 1-2 दिन बाद 200 वर्ग फीट के शामियाने में कार्यालय बदल दिया। इसका 600 रुपए वर्ग फीट का खर्चा आ रहा है।

 

जबलपुर: सभाओं की भीड़ भी पैसे पर

प्रत्याशियों को सबसे ज्यादा भारी किराए की भीड़ पड़ रही है। सभा से लेकर प्रचार अभियान के लिए रोज तीन लाख रुपए से अधिक खर्च हो रहे हैं। इसे स्टार प्रचारकों के दौरों की आड़ में छिपा रहे हैं। पत्रिका को एक प्रत्याशी के खर्च के आकलन में पता चला, वह 5 लाख रुपए वाहनों पर रोज खर्च कर रहा है। इसमें कार्यकर्ताओं व वोटरों को देने वाले ईंधन की पर्ची भी है। कार्यालयों में चाय-नाश्ते, भोजन पर भी खर्च हो रहे हैं। कार्यकर्ताओं में असंतोष ज्यादा होने पर उन्हें साधने पर भी खर्च करना पड़ रहा है। शराब से लेकर नानवेज की पार्टियों पर बड़ी रकम जा रही है। औसतन प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशी एक दिन में 10 लाख से अधिक की राशि खर्च कर रहे हैं।

ग्वालियर: कार्यकर्ताओं के खाने पर खर्च

जनसंपर्क से पहले क्षेत्र में पोस्टर और झंडे लगाने के लिए 500 रुपए की दिहाड़ी पर मजदूर काम कर रहे हैं। ई-रिक्शा वाले दिनभर स्पीकर लगाकर प्रचार कर पैसे कमा रहे हैं। दिनभर प्रचार में जुटे कार्यकर्ताओं के लिए प्रत्याशी खाने की व्यवस्था कर रहे हैं। करीब 200 से 500 पूड़ी-सब्जी के पैकेट कार्यकर्ताओं के पहुंच रहे हैं। दिनभर 3 से 5 रथ और ई-रिक्शा घूम रहे हैं। 500 से 1000 रुपए की दिहाड़ी पर ये वाहन प्रचार में जुटे हैं। हालांकि इन वाहनों का उपयोग चुनाव सामग्री को क्षेत्र पहुंचाने में भी हो रहा है। प्रत्याशी जिस क्षेत्र में प्रचार करने के लिए जाते हैं, वहां एक दिन पहले या फिर रात में झंडे-बैनर, स्टीकर चिपक जाते हैं। चुनाव सामग्री लगाने के लिए दिहाड़ी पर मजदूर तय है। हालांकि क्षेत्र में प्रचार के बाद झड़े-बैनर भी निकालने की जिम्मेदारी इनकी होती है। जहां घनी आबादी है वहां से झंडे और पोस्टर को नहीं हटाया जा रहा है। जिन क्षेत्रों में पार्टी के पार्षद या बड़े नेता है वहां वे खुद ही प्रत्याशी के स्वागत में मालाओं पर पैसा खर्च कर हैं, जिन क्षेत्रों में विरोध पार्टी के समर्थक ज्यादा है वहां नेताजी खुद ही मालाओं की व्यवस्था करते हैं। क्षेत्र में एक ही रोटेशन में घूमती रहती है।

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