कद्दावरों का तिलिस्म
वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की बड़ी भारी फौज जीती है। इनमें से कई कद्दावर नेता माने जाते हैं। नरेेद्र तोमर, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, गोपाल भार्गव, जयंत मलैया जैसे नेता इसमें शामिल माने जा सकते हैं। पार्टी की निगाह में ये कद्दावर तो हैं पर भविष्य की राजनीति में फिट नहीं बैठते। लिहाजा मोहन यादव के रूप में पार्टी ने नए चेहरे वाला मुख्यमंत्री चुनना बेहतर समझा। असल में भाजपा ने मीडिया के उस तिलिस्म को भी चटकाया है, जिसमें चेहरे और वरिष्ठता को दावेदारी का आधार माना जाता रहा है। पार्टी हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड, असम और एक दिन पहले छत्तीसगढ़ में ऐसा कर चुकी थी।
जाति जो प्रदेश के बाहर भी साधे
पिछड़ी जातियों में अब तक प्रदेश की अगुवाई का मौका लोधी और किरार को मिला। 2004 में बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने, पर वे यादव चेहरा नहीं बन पाए थे। हालांकि उत्तरप्रदेश पैतृक गांव भी तब गए थे। छोटा कार्यकाल होने से ही इस समाज को ज्यादा तवज्जो नहीं मिली। पार्टी ने उन जातियों को सूचीबद्ध किया, जिन्हें सत्ता के शीर्ष में कम भागीदारी मिली। प्रदेश के बाहर की राजनीति को भी साधने के लिए हुई खोज में मोहन यादव का नाम सटीक माना गया। एक दलित और एक ब्राह्मण को उप-मुख्यमंत्री बनाकर सोशल इंजीनियरिंग का चक्र पूरा करने की कोशिश भी की गई है। आगे मंत्रिमंडल की बुनावट भी ऐसी ही होनी तय है। आदिवासी और भाजपा के कोर वोटरों के चेहरे को भी अहम जिम्मेदारी देकर साधने की कोशिश होगी।
सीएम-डिप्टी सीएम, स्पीकर साथ-साथ
विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद मोहन यादव और डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा प्रोफेसर कॉलोनी स्थित नरेंद्र तोमर के बंगले पर पहुंचे। बुके देकर उनका सम्मान किया।
अनुभव का उपयोग
पार्टी अनुभवी नेताओं का उपयोग भी करना चाहती है। नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष बनाने का फैसला इसकी पुष्टि करता है। बाकी नेताओं की भूमिका तय करने का काम भी अंदरखाने जारी है। कुछ संगठन में और कुछ सत्ता में एडजस्ट किए जाएंगे। मोहन यादव की असली चुनौती तो उस एजेंडे को साधने की होगी कि वरिष्ठ रूठें नहीं और नई उम्र को काम करने का ज्यादा स्पेस मिले।
पीढ़ी परिवर्तन का रोडमैप
पार्टी पीढ़ी परिवर्तन का संदेश देना चाहती थी, मगर दमखम वाले नेता की तलाश थी। मोहन यादव ऐसे ही नेता हैं। उनकी छवि लड़ाकू-जुझारू नेता की रही है। शासन—प्रशासन में वे हक से काम कराते रहे हैं। उनका चयन कर पार्टी ने आगे की राह का जिम्मा उन्हें सौंपने में हिचक नहीं की। संकेत साफ है..नए विचारों के साथ आगे बढ़े या मार्गदर्शक मंडल में बैठकर नए दौर की बैटिंग-बॉलिंग, फील्डिंग की जमावट देख आनंदित हों।
चेहरा बदलना क्यों जरूरी था
शिवराज पूरी मेहनत से चुनाव में जुटे हुए थे। लाड़ली बहना योजना पर सवार होकर उन्होंने पूरे प्रदेश में पार्टी का और खुद का प्रचार किया। नतीजों से प्रतीत हुआ कि उनके चेहरे और बातों से जनता उबी नहीं है। मगर, पार्टी के मन में कुछ नया और तूफानी करने का द्वंद्व चल रहा था। यही वजह रही कि उन्हें बदलने का निर्णय कर लिया गया।