राग को विस्तार देते हुए उन्होंने इसमें विलंबित एक ताल में ‘कैसे सुख सोवे श्याम…”पेश किया। इस क्रम में दु्रत तीन ताल में ‘हे मुरारी, हे मुरारी, हे मुरारी। तुम से लागी, लागी नैरा…” के जरिए राधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम को महसूस करने का अवसर दिया। उनकी गायकी ने अंतरंग सभागार के संगीत के भक्तिपरक भाव से सराबोर कर दिया। इसके बाद उन्होंने छोटा दादरा पेश किया।
ऐरी माई साजन नहीं आए… संगीत सभा की अगली प्रस्तुति सोनल शिवकुमार की रही, जिसमंे उन्होंने राग बागेश्री सुनाया। इसमें उन्होंने बिलंबित तीन ताल में ‘कौन गत भई मोरी…” बंदिश सुनाई। इसके बाद अद्धा तीन ताल में स्व. किशोरी अमोड़कर रचित बंदिश ‘ऐरी माई साजन नहीं आए…”और एक ताल की दु्रत बंदिश ‘सुनत तान भई बावरिया…” सुनाई। यह कंपोजिशन अश्विनी भिड़े देशपांडे की थी। प्रस्तुति के दौरान तबले पर रामेंद्र सिंह सोलंकी और जीतेश मराठे ने लहरा दिया। सभा का चिरपरिचित संचालन कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने किया।