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भोपाल

हमीदिया सहित 6 मेडिकल कॉलेज में खुलेंगे आईवीएफ सेंटर

अब गरीब दंपती इस तकनीक का लाभ ले सकेंगे

भोपालFeb 10, 2024 / 07:03 pm

Anupam Pandey

भोपाल. मध्य प्रदेश में अब एम्स के बाद 6 मेडिकल कॉलेजों में भी आईवीएफ सेंटर खोलने के लिए मंजूरी मिल गई है। इसमें सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि इसका लाभ आयुष्मान कार्ड में दिया जाएगा। अब तक आईवीएफ की सुविधा सिर्फ वे लोग उठा रहे थे जो निजी आईवीएफ सेंटर में मोटी रकम चुका सकते थे। लेकिन अब गरीब दंपती इस तकनीक का लाभ ले सकेंगे। बता दें शुक्रवार को एम्स में इनफर्टिलिटी क्लीनिक की शुरू किया गया है। जिससे उन्नत बांझपन सेवाएं लोगों को मिल सकेंगी। साथ ही यहां आनेवाले दंपतियों की सभी जरूरी जांच के बाद दो माह में शुरुआत हो सकेगी।
सरकार देती है अयुष्मान योजना में 80 हजार तक की मदद: मध्य प्रदेश ऐसा अकेला राज्य है, जहां आयुष्मान योजना के तहत आईवीएफ के लिए आर्थिक लाभ दिया जाता है। इस प्रकार सरकारी में यह सुविधा शुरू होने से बेहद कम खर्च में निसंतानता महिलाओं का मां बनने का सपना पूरा हो सकता है। अब गुजरात की कुछ स्वदेशी कंपनियां भी आईवीएफ इंजेक्शनों को बना रही है। जिससे खर्च को कम करने में मदद मिली।
प्रदेश के इन मेडिकल कॉलेजों में खुलेंगे आईवीएफ

राज्य के 6 मेडिकल कॉलेज में आईवीएफ सेंटर शुरू करने की योजना है। इनमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, रीवा और सागर के मेडिकल कॉलेजों के नाम शामिल हैं। इस साल फरवरी में इन सभी के प्रस्ताव को की मंजूरी दी गई थी। इन सभी में हमीदिया हॉस्पिटल में सबसे पहला आईवीएफ सेंटर खुलेगा।
महिला के साथ पुरुष की भी जांच जरूरी: म्स भोपाल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में क्लीनिक की शुरुआत की गई है। एम्स के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने कहा कि यह नि:संतान दंपतियों के लिए समर्पित सेवा है। इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रहे जोड़ों के लिए सबसे पहले परामर्श जरूरी है। समय पर पुरुष में भी इनफर्टिलिटी का मूल्यांकन होना चाहिए।
मुख्य बिंदु

● शहर में लगभग 20 निजी आईवीएफ सेंटर्स हैं, इनमें 3 से 5 लाख रुपये का खर्च आता है।

● आईवीएफ के लिए महिला के गर्भाशय में एक या दो स्वास्थ्य भ्रूण ही ट्रांसफर किए जा सकते हैं। गंभीर मामलों में ही तीन भ्रूण करने की अनुमति होती है।
● महिलाओं के लिए 50 और पुरुष के लिए 55 साल की आयु सीमा है।

गर्भधारण न कर पाने के पीछे यह हो सकते हैं कारण

● अंडे या शुक्राणु में खराबी
● गर्भाशय के आकार में समस्या

● गर्भाशय में फाइब्रोइड

● शरीर में हार्मोन का असंतुलन

● गर्भाशय में संक्रमण, पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, थायराइड, तनाव या अन्य रोग

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