बचपन में घर के पास हॉकी समर कैंप लगा। मैं बैडमिंटन या क्रिकेट ही खेलना चाहती थी, पर समर कैंप में हॉकी ही सिखा रहे थे, इसलिए दोस्त के कहने पर मैंने पहली बार हॉकी खेलना शुरू किया। 2013-14 में समर कैंप में हॉकी खेली। कोच अंजुम खान ने प्रतिभा को पहचाना और खूब मेहनत की। इसके बाद 2015 में मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में असली पारी शुरू हुई। कोच अशोक ध्यानचंद ने प्रतिभा को पहचान प्रशिक्षण शुरू किया। 2017 में कैंप में चयन हो गया। खुशबू नेशनल वुमन टीम की गोलकीपर हैं। दो जूनियर वर्ल्ड कप खेल चुकीं। वे कहती हैं कि अशोक सर और ओलंपियन सैयद जलालउद्दीन रिजवी के साथ कोच समीर दाद और अल्ताफ उर रहमान का मार्गदर्शन रहा, जो आज यहां तक पहुंच पाई। अभिभावकों का हर कदम पर सहयोग मिला।
मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। झुग्गी में रहते थे। स्कूल के बाद वहीं कपड़े बदलकर रोज 15-16 किमी पैदल स्टेडियम जाती। कई लोगों ने मां से कहा लड़की को क्यों हॉकी खिला रहे हो, शादी कर दो। तब मम्मी ने कहा कि उसमें प्रतिभा है, तो आगे बढ़ेगी। खुशबू ने यूथ ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता, दो जूनियर वर्ल्ड कप में से एक में टीम चौथी पॉजिशन पर रही। हाल के वर्ल्ड कप में 9वीं पॉजिशन फिनिश की। खुशबू 2024 में होने वाले सीनियर वर्ल्डकप कैंप के लिए नाम आ चुका है। जल्द सिलेक्शन और ट्रायल होंगे। उन्हें मप्र सरकार का एकलव्य अवार्ड मिल चुका है।
खुशबू कहती हैं कि भोपाल ने कई हॉकी ओलंपियन दिए हैं, लेकिन लड़कों में। वे भोपाल से पहली महिला हॉकी प्लेयर हैं, जो यहां तक पहुंचीं। जो कभी ताना मारते थे, आज वही लोग भोपाल की शान कहते हैं। वे कहती हैं कि कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। बहुत मुश्किलें देखीं। हॉकी के इक्यूपमेंट नहीं खरीद सकती थी, शुरू से स्ट्रगल किया। कैंप में सिलेक्शन हुआ, तब संसाधन मिले। पिछले साल आयरलैंड में टूर्नामेंट में घुटने में इंजरी हो गई, जिसने बहुत सिखाया। स्ट्रगल पूरी जिंदगी चलता है, बस उम्मीद नहीं हारनी चाहिए। आप हर परिस्थिति में आगे बढ़ने का हौसला रखें, तो सफलता कदम चूमेगी।