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Astrology : आकाश मंडल में सभी ग्रह हुए राहू-केतु के बंदी, जानिये 16 फरवरी तक क्या होने जा रहा है खास

मकर राशि में चार ग्रहों का जमावड़ा राजनीतिक असंतोष करेगा।

भोपालFeb 07, 2018 / 01:17 pm

दीपेश तिवारी

भोपाल। ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को दैत्य गुरु शुक्राचार्य व ब्रहस्पति को देव गुरु के तौर पर जाना जाता है। कुंभ शनि की राशि होती है, ऐसे में जब कुंभ में शुक्र का प्रवेश होगा तो फिल्म जगत से जुड़े लोगों को कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं।
वहीं पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि अभी आकाश मंडल में कालसर्प योग की छाया बनी हुई है। ऐसे में आने वाले दिनों यानि 16 फरवरी तक आकाश मंडल में सभी ग्रह राहू-केतु के बंदी रहेंगे।
इस दौरान पृथ्वी पर जन्म लेने वाले सभी नवजात शिशुओं की कुंडली में कालसर्प दोष बन सकता है। वहीं मकर राशि में चार ग्रहों का जमावड़ा राजनीतिक असंतोष करेगा। काल सर्प योग की छाया एवं चतुर्गही योग के प्रभाव से प्राकृतिक प्रकोप व आतंकी घटनाओं की आशंकाएं भी पैदा हो रही हैं।
दरअसल, शुक्र ग्रह ने मंगलवार रात्रि को कुंभ राशि में प्रवेश किया है। पंडित शर्मा के आनुसार इसके साथ बृहस्पति ग्रह के वक्री (उल्टी चाल चलेंगे) होने के कारण धार्मिक उन्माद की आशंकाएं पैदा हो रही हैं।
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साथ ही यह भी माना जा रहा है कि आगामी दिनों में धार्मिक उन्माद एवं शिक्षा के क्षेत्र में कोई बड़ा खुलासा हो सकता है। ज्योतिष के समीकरणों के कारण ज्योतिष के जानकारों द्वारा ऐसा होने के कयास लगाया जा रहा हैं।
ग्रहों की दशाओं को देखते हुए ज्योतिष विजय शास्त्री का कहना है आगामी दिनों में कोई नया कड़ा कानून भी बन सकता है। वहीं देव गुरु का वक्री होना साधु-संतों के लिए भी अशुभकारी माना जा रहा है। हालांकि, शुक्र ग्रह का शनि के घर में राशि परिवर्तन करना न्याय व्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा।
शास्त्री ने बताया कि गुरु वक्री होकर वृश्चिक राशि में आ जाएगा, जिसके बाद वह वहां पर 11 जुलाई तक वक्री ही रहेगा। 5 महीने 6 दिन तक गुरु का वक्री होना काफी अशुभ माना जा रहा है।
यहां होगा कालसर्प दोष शांति का अनुष्ठान…
कालसर्प दोष की शांति के लिए हबीबगंज रेलवे स्टेशन स्थित त्रंबकेश्वर धाम मां भवानी शिव मंदिर पर 13 फरवरी से 15 फरवरी तक ब्रह्म शक्ति ज्योतिष संस्थान द्वारा तीन दिवसीय विशेष अनुष्ठान कराया जाएगा। यह अनुष्ठान शिवरात्रि के मौके पर होंगे।
कालसर्प दोष की शांति के लिए वैदिक रीति-रिवाज से अनुष्ठान यज्ञ किए जाएंगे।
जानकारी के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष, मंगल दोष, राहु-केतु व शनि की महादशा एवं अंतर्दशा के कारण समय विपरीत चल रहा है। उनके लिए यह शांति अनुष्ठान किए जाएंगे। यज्ञ में शामिल होने के लिए कोई भी व्यक्ति अपना पंजीयन करा सकता है।
जानिये क्या है कालसर्प दोष:
ज्योतिष के अनुसार जहां कुछ जगह कालसर्प को दोष के रूप में देखा जाता है, वहीं कई लोग इसे योग की श्रेणी में भी रखते हैं। दरअसल कुंण्डली में सभी ग्रहों का राहू व केतु के बीच में आ जाना कालसर्प दोष कहलाता है। यानि जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य समस्त ग्रहों के एकत्रित होने से निर्मित योग काल सर्प कहलाता है।
इस संबंध में जानकारों का मानना है कि ये दोनों ग्रह अंतिम कोनों में हों यानि इनको कोई ग्रह न तो क्रॉस करता हो और न ही इनके साथ मंगल जैसा कोई ग्रह बैठा हो तभी ये दोष उत्पन्न होता है।
वहीं यह भी कहा जाता है कि दरअसल इस तरह की कुंण्डली होने पर यदि शुक्र मजबूत होता है तो यह दोष योग का फल देता है। वहीं इसे दोष मानने का मुख्य कारण यह हे कि कहा जाता हे कि ऐसे जातक कभी संतुष्ट नहीं होते हैं जिस कारण लगातार और परेशान होते रहते हैं।
वहीं यह भी कहा जाता है कि काल सर्प योग दुर्योग नहीं है, इस योग ने ही बड़े-बड़े चक्रवर्ती राजाओं, राज नेताओं, उद्योगपतियों और अभिनेताओं को जन्म भी दिया और उंचाईयों पर भी पहुंचाया। काल सर्प योग कभी-कभी आरंभिक असफलता देता है, लेकिन वह शुरुआती नाकामयाबी बड़ी तरक्की की पाठशाला साबित होते हैं। काल सर्प अक्सर जीवन के 44वें वर्ष के बाद बड़ी सफलता देता है।
ये हैं बचाव के तरीके…
1. महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
2. कालसर्प योग शांति के लिए नागपंचमी के दिन व्रत करें।

3. काले नाग-नागिन का जोड़ा सपेरे से मुक्त करके जंगल में छोड़ें।
4. चांदी के नाग-नागिन के जोड़े को बहते हुए दरिया में बहाने से इस दोष का शमन होता है।
5. उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर स्थित नागचन्द्रेश्वर मंदिर (जो केवल नागपंचमी के दिन ही खुलता है) के दर्शन करें।
6. अष्टधातु या कांसे का बना नाग शिवलिंग पर चढ़ाने से भी इस दोष से मुक्ति मिलती है।
7. शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है।
8. घर की चौखट पर मांगलिक चिन्ह बनवाने विशेषकर चाँदी का स्वास्तिक जड़वाने से शुभता आती है, काल सर्पदोष (Kaal Sarp Dosh) में कमी आती है ।
9. पंचमी के दिन 11 नारियल बहते हुए पानी में प्रवाहित करने से काल सर्पदोष दूर होता है , यह उपाय श्रवण माह की पंचमी अर्थात नाग पंचमी (Nag Panchmi) को करना बहुत फलदायी होता है ।
10. किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय’ की 21 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प शिवलिंग पर समर्पित करें।
11. श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें। शिवलिंग पर तांबे का सर्प विधिपूर्वक चढ़ायें।
12. श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
13. श्रावण के प्रत्येक सोमवार को शिव मंदिर में दही से भगवान शंकर पर – हर हर महादेव’ कहते हुए अभिषेक करें।
14. श्रावण मास में रूद्र-अभिषेक कराए व महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप रोज करें।
15. नाग पंचमी एवं प्रत्येक माह के दोनों पक्षों की पंचमी के दिन “ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा” मंत्र का जाप अवश्य ही करें। इससे काल सर्प योग ( kaal Sarp Yog ) के दुष्प्रभाव में कमी होती है ।
17. जिस भी जातक पर काल सर्प दोष हो उसे कभी भी नाग की आकृति वाली अंगूठी को नहीं पहनना चाहिए ।
18. सर्प सूक्त से उनकी आराधना करें।
।।श्री सर्प सूक्त।।
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।

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