भोपाल

डिनर पार्टियों और रियायती छुट्टियों तक सिमटकर रहे गए हैं देश के आईएएस अफसर

आईएएस अफसर दीपाली रस्तोगी का बड़ा हमला, बोली अफसरों को ताकत चाहिए सिर्फ अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए

भोपालJul 01, 2018 / 08:02 pm

shailendra tiwari

डिनर पार्टियों और रियायती छुट्टियों तक सिमटकर रहे गए हैं देश के आईएएस अफसर

भोपाल. मध्यप्रदेश सरकार की आईएएस अफसर दीपाली रस्तोगी ने एक बार फिर बड़ा हमला बोला है, हालांकि यह हमला सरकार पर न होकर उन्होंने अपनी बिरादरी पर किया है। लेकिन बातों ही बातों में उन्होंने सरकार, नेता और आईएएस अफसर के रिश्तों की छुपी परतों को उधेड़ दिया है। उन्होंने साफ कहा कि आईएएस अफसर सिर्फ डिनर पार्टियों और रियायती छुट्टियों तक सिमटकर रह गए हैं। उन्हें ताकत चाहिए तो सिर्फ अपने चहेतों और रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए।
 

आपको बता दें कि दीपाली रस्तोगी और उनके पति मनीष रस्तोगी मध्यप्रदेश सरकार में प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी हैं और मनीष रस्तोगी को पिछले दिनों प्रदेश सरकार ने पद से हटा दिया था। उन्होंने प्रदेश में हुए ई—टेंडर घोटाले को उजागर कर दिया था, उसके बाद दूसरे आईएएस की नाराजगी का शिकार होकर उन्हें उनके विभाग ने रवाना कर दिया गया।
 

संभलकर और सतर्क बनना ज्यादा दिक्कत दे रहा
उसके बाद से दोनों ही अफसरों ने चुप्पी साध रखी थी। लेकिन रविवार को एक अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने लेख में लेटरल एंट्री के बहाने आईएएस बिरादरी से लेकर सरकार, अफसर और नेताओं के गठबंधन पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने अपनी शुरुआत करते हुए कहा कि पिछले दिनों संयुक्त सचिव के स्तर पर नौकरशाही में लेटरल एंट्री के लिए आवेदन आमंत्रित करने वाले विज्ञापन ने भारतीय प्रशासनिक सेवा बिरादरी के बीच काफी लहर पैदा की।

 

फेसबुक, व्हाट्सएप और इतने पर सोशल मीडिया समूह राय और विचारों से भरे हुए थे। कुछ इसके विरोध में थे, कुछ गुस्से में भी थे, लेकिन समर्थक कम ही थे। लेकिन ज्यादातर ऐसे थे जो खामोश थे, सतर्क थे या कहें कि बड़े ही संभलकर बोल रहे थे। असल में आईएएस अधिकारी वही हैं जो संभलकर बोल रहे थे और सतर्क थे।


अपने राजनीतिक आकाओं की इच्छा पूरी करने में जुटे हैं
दीपाली ने आगे लिखा, ये वे लोग हैं जो बोलने से पहले अपने शब्दों को बहुत सावधानी से वजन देते हैं। अधिकांश महत्वपूर्ण मामलों पर बात नहीं करते हैं। ऐसे मामलों पर नहीं बोलते हैं जिन पर उन्हें बोलने की जरूरत होती है, बस खामोश रहते हैं, क्योंकि बोलने पर उन्हें पकड़ा जा सकता है। यही वजह है कि वह खामोशी ओढ़ लेते हैं और यही वो मुख्य वजह है जिसके कारण वह पीछे की ओर धकेले जा रहे हैं।

 

आज एक आईएएस अधिकारी की सबसे बड़ी काबिलियत ही यही हो गई है कि वह अपने राजनीतिक आका के मुंह से शब्द निकलने से पहले उसके हिसाब से काम करना शुरू कर दे। सबसे अच्छा अधिकारी वो हो गया है, जिसकी अपनी कोई राय ही न हो। कुल मिलाकर नौकरशाही और राजनीति के बीच की लाइन, सही और गलत, सच्चाई और झूठ की ओर झुकती जा रही है। ऐसे में एक आईएएस अधिकारी सरकार चलाने के लिए अपने सभी मूल विचारों को खो देता है।


सिर्फ चाटुकारों की सुन रहे, बाकी की सुनना बंद कर दिया
आईएएस अधिकारियों ने आजकल स्वयं को छोड़कर किसी को भी सुनना बंद कर दिया है। उनके लिए उन लोगों की राय महत्वपूर्ण हो जाती है, जो उनकी चाटुकारिता करते हैं। ऐसे में जमीनी हकीकत उन्हें नजर ही नहीं आती है। ऐसे में उसकी राय या ज्ञान अनावश्यक हो जाता है, क्योंकि यह न तो असली ही रह जाता है और न ही वर्तमान। उनके आंकड़े सत्ता में बैठे लोगों के हिसाब से परिवर्तित हो जाते हैं। वह सिर्फ वही दिखाते हैं, जिसे सत्ता में बैठे लोग देखना चाहते हैं। कुल मिलाकर उनकी राय केवल “सही दिखाई देती है” या “सही संदेश बताती है” का भ्रमित उलझन है।


ताकत का इस्तेमाल सिर्फ अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए
आज वास्तविकता से बहुत दूर हैं आईएएस अफसर। लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं है। उन्हें अपने वेतन, भत्ते, क्लब सदस्यता, कार, ड्राइवर, घरेलू सहायता, शानदार घर, डिनर पार्टियां, रियायती छुट्टियां, विदेशी यात्राएं, और मूर्ख और औसत दिमागी “शक्ति” मिल गई है जिसके सहारे अपने मित्रों और रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाया जा सके।


आईएएस अधिकारी धोखा महसूस करता है, जब उसके राजनीतिक आका उसे राह में छोड़ देते हैं। क्योंकि उन्हें वही बातें नहीं दोहरानी है। जबकि वह अफसर जिसने अपनी पूरी रीढ़ की हड्डी को सिर्फ इसलिए सड़ने दिया, क्योंकि उसके आका उससे वह सुनना चाहते थे और वह न चाहते हुए भी वही सुनाता रहा। लेकिन अब क्या, उसकी विशेषज्ञता क्या यही थी? क्या प्रतिष्ठित पोस्टिंग को पाने के लिए उसने यह सब किया, या फिर उसकी मूल्यवान वो खेती थी, जिसे उसने अपने एक्सपीरिंयस के सहारे जिया था।

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