इधर, राजनीतिक मामलों के जानकारों का कहना है कि हमेशा से दलबदलू सत्ता की तरफ भागते रहे हैं, चाहे वह किसी भी पार्टी की सत्ता क्यों न हो। कई तो पार्टियों की रणनीति का शिकार होकर जनता का विश्वास खो देते हैं। किसी को सफलता मिल भी जाए तो वह स्थाई नहीं होती।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल के अनुसार पार्टी जब भी जो निर्णय लेती है उसमें कार्यकर्ताओं के सम्मान की झलक दिखती है। कांग्रेस के दावों को क्या कहा जाए, क्योंकि खांटी कांग्रेस गुप्त है और पूरी कांग्रेस सुस्त है। प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि विस चुनाव के समय कांग्रेस में 25 हजार से अधिक भाजपाई आए थे। कुछ चले भी गए तब भी भाजपा से आए हजारों कार्यकर्ता कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं।
ये चूके हुए कारतूस
चुनाव के समय पार्टी बदलने वाले चूके हुए कारतूस की तरह होते हैं। ये जनता की चिंता नहीं करते। खुद का भला चाहते हैं। इनके कामों में जनकल्याण की भावना दब जाती है। एक तरह से इन्हें प्रवासी पक्षी कहा जा सकता है। जिस पार्टी की सत्ता, उस पार्टी के साथ होने का अवसर खोजते हैं। इनमें से कुछ ही ऐसे होते हैं, जो वास्तव में उपेक्षा का शिकार होते हैं। बाकी को अवसरवादी से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। जो दलबदल कर सफलता हासिल करते भी हैं तो वह स्थाई नहीं होती।
विजय दत्त श्रीधर, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार
दलबदलुओं का धर्म नहीं
पार्टियां वातावरण बनाने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर दूसरे पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के शामिल होने के दावे करती हैं। ज्यादातर दलबदलू इसका शिकार हो जाते हैं। जनता में इनके प्रति ठीक संदेश नहीं जाता। ये संबंधित पार्टियों के मूल और जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए नुकसान पैदा करते हैं। अभी नहीं तो बाद में टकराव बढऩा तय है। ये ऐसे अवसरवादी होते हैं, जिनका कोई धर्म नहीं होता। पार्टी और सरकारों पर भी इनके आने-जाने का असर नहीं पड़ता। पार्टियों की ये बाजीगरी है, जनता को ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
महेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार