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भोपाल

सावधान! प्रदूषित हवा से सिकुड़ रहीं सांस की नलियां, 40 प्रतिशत के फेफड़े कमजोर

राजधानी भोपाल में इन दिनों वायु प्रदूषण से हर नागरिक परेशान है। शहर का एक्यूआई कई जगहों पर 360 के लेबल को पार कर गया है। इस खतरनाक स्थिति के कारण लोग बीमार हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह शहर के ‘फेफड़े’ यानी पेड़ों का कट जाना है।

भोपालNov 25, 2023 / 09:16 am

deepak deewan

राजधानी भोपाल में इन दिनों वायु प्रदूषण से हर नागरिक परेशान

भोपाल. राजधानी भोपाल में इन दिनों वायु प्रदूषण से हर नागरिक परेशान है। शहर का एक्यूआई कई जगहों पर 360 के लेबल को पार कर गया है। इस खतरनाक स्थिति के कारण लोग बीमार हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह शहर के ‘फेफड़े’ यानी पेड़ों का कट जाना है।

जेपी अस्पताल में फेफड़े की जांच मशीन और विशेषज्ञ आए
शहरवासियों के फेफड़े प्रदूषित हवा की वजह से खराब हो रहे हैं। जेपी अस्पताल में पिछले दो दिनों में पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट (पीएफटी) के लिए आए 40 प्रतिशत मरीजों के फेफड़े कमजोर पाए गए हैं।

धूलभरी सांस की वजह से उनके लंग्स काले पड़ गए हैं। इनमें से ज्यादातर मरीज खराश, सूखी खांसी, सांस लेने में तकलीफ और सांस फूलने की समस्या की वजह से अस्पताल पहुंचे थे। चेस्ट फिजीशियन के अनुसार मरीजों की इस स्थिति के लिए शहर की खराब हवा जिम्मेदार है।

36० पहुंचा एक्यूआइ
प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों के बावजूद शहर का एक्यूआइ लेवल कंट्रोल में नहीं आ रहा। शुक्रवार को पर्यावरण परिसर केंद्र की रीडिंग में 360 एक्यूआइ दर्ज किया गया। इससे पहले सबसे खराब एक्यूआइ दिवाली के दौरान 323 था। 10 दिनों से शहर में एक्यूआइ का स्तर 300 के करीब बना हुआ है। जबकि,200 से ऊपर लेवल होते ही सेहत के लिए बेहद हानिकारक हो जाता है।

सांस की नलियों में सिकुड़न
फेफड़ों की क्षमता की जांच के लिए पीएफटी मशीन का उपयोग हो रहा है। इसके तहत फेफड़े की हवा भरने, हवा को अंदर लेने और निकालने की जांच हो रही है। फेफड़ों की ऑक्सीजन सोखने की क्षमता भी देखी जा रही है। ज्यादातर में सांस की नलियों में सिकुड़न की शिकायत मिल रही है। पल्मोनरी मेडिसिन डिपार्टमेंट ने चेतावनी दी है कि प्रदूषण जल्द नियंत्रित नहीं हुआ तो सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, भ्रम, कमजोरी की समस्या हो सकती है।

क्यों है नुकसानदेह एयर पॉल्यूशन
एयर पॉल्यूशन के दौरान हवा में न्यूरोकॉग्निटिव बढऩे लगता है। जिसके कारण नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड ज्यादा मात्रा में बढ़ जाते हैं। ये इंसान के नर्वस सिस्टम को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं।

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