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भोपाल

एमपी के दो महानगरों के बीच बनी 80 किमी लंबी सबसे बड़ी दीवार

The Great Wall of India दो महानगरों के बीच बनी 80 किमी लंबी सबसे बड़ी दीवार

भोपालSep 28, 2024 / 09:18 pm

deepak deewan

The Great Wall of India

मध्यप्रदेश वाकई अजब गजब है। यहां हमेशा से अनूठे काम होते आए हैं और यह सिलसिला अभी भी बरकरार है। विश्वभर में चीन की दीवार को दुनिया की सबसे लंबी दीवार के रूप में जाना जाता है। भारत में भी कई जगहों पर लंबी दीवारें मौजूद हैं। ऐसी ही एक दीवार मध्यप्रदेश में भी है जोकि करीब 80 किमी लंबी है। प्रदेश के दो महानगरों के बीच में स्थित यह दीवार घने जंगलों से गुजरती है। एमपी की यह सबसे लंबी दीवार है जो रायसेन जिले में है। इसे द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है। इसे बनाने के लिए लाल बलुआ पत्थर की बड़ी चट्टानों का इस्तेमाल किया गया है। पर्यटन दिवस पर बड़ी संख्या में लोग इस दीवार का दीदार करने पहुंच गए।
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के देवरी के पास गोरखपुर के जंगल से बाड़ी के चौकीगढ़ किले तक 15 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी दीवार बनी है। जिस तरह दुनिया की सबसे बड़ी दीवार कही जाने वाली चीन की दीवार निर्माण विदेशी हमलों से बचने के लिए कराया गया था, उसी प्रकार यह दीवार भी पड़ौसी राजाओं से सुरक्षा के लिए बनवाई गई थी। इतिहासकारों के अनुसार 10-11वीं शताब्दी में जबलपुर के कल्चुरी शासकों के हमले से बचने के लिए परमार वंश के राजाओं ने यह दीवार बनवाई थी।
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देवरी के गोरखपुर गांव से शुरू हुई दीवार अधिकांश जगहों पर जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है लेकिन कई जगहों पर अच्छी हालत में भी दिखाई देती है। 80 किमी लंबी दीवार के आसपास कई मंदिरों के अवशेष भी हैं। यह दीवार परमार राजाओं की सुरक्षा दीवार थी। बताया जाता है कि कल्चुरी राजाओं के हमले से बचने के लिए परमार वंश के राजाओं ने यह दीवार इंटरलॉकिंग सिस्टम से बनवाई।
प्रदेश की राजधानी भोपाल और प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर के बीच यह ऐतिहासिक धरोहर स्थित है। गोरखपुर गांव से आगे नरसिंहपुर और जबलपुर पड़ता है, जो उस दौर में कल्चुरी शासन के तहत ही आते थे। दरअसल उस परमार और कल्चुरी शासकों के मध्य कई युद्ध हुए। इसके बाद परमार राजाओं ने लाल बलुआ पत्थर की बड़ी चट्टानों का इस्तेमाल कर यह सुरक्षा दीवार बनवाई। इसके दोनों ओर विशाल चौकोर पत्थर लगे हैं।
दीवार में हर पत्थर में त्रिकोण आकार के गहरे खांचे भी बने हुए हैं, ताकि पत्थरों की इंटरलॉकिंग की जा सके। खास बात यह है कि जोड़ने के लिए इसमें चूना, गारा का इस्तेमाल नहीं किया गया है। गोरखपुर से करीब आठ किमी दूर मोघा डैम पर इस दीवार का काफी हिस्सा आज भी सुरक्षित है।
प्रदेश के पुरातत्वविद् और इतिहासकार बताते हैं कि विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की पहाडि़यों पर घने जंगलों में 10-11वीं शताब्दी के मध्य परमार कालीन राजाओं ने इसे बनवाया था।

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