अष्टमी : सोमवार सुबह 3:40 से रात 2:20 बजे तक
पंडित अशोक व्यास ने बताया कि द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, तब जो शुभ योग थे, लगभग वहीं योग इस बार बन रहे हैं। भगवान कृष्ण के जन्म के समय के छह तत्व हैं। भाद्र कृष्ण पक्ष, रात 12 बजे, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि में चंद्रमा, इनके साथ सोमवार या बुधवार का होना है। भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि अष्टमी तिथि को हुआ था। इस बार यह तिथि एक दिन सोमवार सुबह 3:40 बजे से देर रात 2:20 बजे तक रहेगी। ऐसे में स्मार्त और वैष्णव एक ही दिन अष्टमी मनाएंगे। पूजन का समय रात 12 से 12.30 बजे तक
26 अगस्त रात 12 से 12:30 बजे तक पूजा का विशेष समय है। रात 12 बजे वृषभ लग्न के साथ चंद्रमा वृषभ में उच्च के रोहिणी नक्षत्र में गोचर करेगा। चंद्रमा के साथ मिलकर गजकेसरी योग व शनि के मूल त्रिकोण राशि कुंभ में गोचर से शश योग बनेगा।
श्रीकृष्ण के जन्म के समय भी वृषभ लग्न में चन्द्रमा उच्च के रोहिणी में गोचर कर रहे थे। चतुर्थ भाव में स्व राशि के सूर्य और शनि बलवान अवस्था में थे।
30 साल बाद सूर्य सिंह और चंद्रमा वृषभ राशि में
सोमवार के दिन अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी में रोहिणी नक्षत्र होने पर जयंती योग का निर्माण भी होगा। ऐसे में यह योग प्रजाहित के लिए विशेष फलदायी साबित होगा। द्वापर काल में भगवान कृष्ण के जन्म के समय सूर्य सिंह राशि में, चंद्रमा वृषभ, मंगल वृश्चिक राशि तथा शनि कुंभ राशि के केंद्र में था। इस बार 30 साल बाद सूर्य, शनि और चंद्रमा उसी स्थिति में रहेंगे।