आसानी से हो सकेगा नष्ट इस प्रोजेक्ट के समन्वयक आईआईटी भिलाई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजीब बैनर्जी ने बताया कि धुएं से कार्बन को अलग करने प्रोटोटाइप तैयार है। शुरुआती रिसर्च के आधार पर देखा गया है कि हवा में घुली कार्बन डाईआक्साइड को प्रोसेस करने पर विशेष प्लास्टिक मिलता है। आमतौर पर प्लास्टिक करीब 500 साल तक नष्ट नहीं होता, लेकिन कार्बन को फिल्टर कर निकाला गया बायोडिग्रेडबल लेवल का प्लास्टिक आसानी से नष्ट किया जा सकता है।
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बनाएंगे बीपीए फ्री प्लास्टिक आईआईटी के प्रोफेसरों ने बताया कि वातावरण से कार्बन डाईआक्साइड को अलग कर बीपीए फ्री प्लास्टिक भी तैयार करने पर रिसर्च तेजी से चल रही है। इसके अलावा हैल्थ सेक्टर में अभी जो बीपीए फ्री प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह काफी महंगा है। हैल्थ सेक्टर की कॉस्ट में कमी लाने के लिए आईआईटी बीपीए फ्री सस्ता प्लास्टिक बनाने तैयारी कर रहा है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में शुरुआत इस प्रोजेक्ट की शुरुआत से पहले आईआईटी भिलाई के साथ मध्यप्रदेश के वातावरण पर रिसर्च करेगा। आबोहवा में घुली कार्बन की मात्रा का पता लगाया जाएगा। इसके बाद धुएं को एकत्रित करने के लिए वहीं विशेष चैंबर तैयार किए जाएंगे, जिसको प्रोसेस कर प्लास्टिक मिलेगा। वर्तमान प्रदूषण इंडेक्स के हिसाब से मध्यप्रदेश में इस समय वायुमंडल में सर्वाधिक कार्बन डाईआक्साइड मौजूद है। वहीं इंडस्ट्रीज और गाडिय़ों से निकलने वाले धुएं की मात्रा भी एमपी में सीजी की तुलना में अधिक है। बहरहाल, रिसर्चर दोनों ही राज्यों के वातावरण का अध्ययन कर जगह का चुनाव करेंगे।
कार्बन फुटप्रिंट कम होगा आईआईटी भिलाई ने सोमवार को हेल्थ केयर और ऊर्जा के क्षेत्र में कार्यरत संस्था कैलीच के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत अब दोनों ही संस्थान कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और हैल्थ केयर सेक्टर को सस्टेनेबल बनाने की दिशा में काम करेंगे। इस एमओयू के दौरान आईआईटी भिलाई के डायरेक्टर डॉ. राजीव प्रकाश, डीन (आरएंडडी) प्रोफेसर संतोष विश्वास, कैलीच के सीईओ अमित प्रियदर्शन ने हस्ताक्षर किए।