अनौखा है झील का बाड़ा का इतिहास वरिष्ठ साहित्यकार रामवीर सिंह वर्मा बताते हैं कि भरतपुर के दक्षिण-पश्चिम भाग में बयाना के पास झील का बाड़ा नामक स्थान पर कैलादेवी का विशाल परिसर है। इस प्राचीन मंदिर का पुर्नरुद्धार महारानी गिर्राज कौर ने कराया था और वर्तमान देवी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा वर्ष 1923 ई. में की गई। पूर्व महाराजा बृजेंद्र सिंह इसी मंदिर में अष्ठमी की पूजा करने जाया करते थे। यहां बड़ा लक्खी मेला लगता है जो कि नवरात्र से आरंभ होकर पूरे दिन तक चलता है, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इस साल भी नवरात्र में मेला नहीं लग सकेगा। रियासतकालीन समय में एक बहुत बड़ा शामियाना झील का बाड़ा में लगाया जाता था। जहां पर महाराजा बृजेंद्र सिंह जल्दी पहुंच कर प्रथम स्नान किया करते थे एवं पीताम्बरी पहन कर पूजा अर्चना करते थे। मंदिर में महाराजा के पूजा करने की विशेष व्यवस्था की जाती थी। पुलिस आदि का पूरा इंतजाम होता था। महाराजा मंदिर परिसर में बैठकर देवी की पूजा करते थे। उसी समय मंदिर परिसर में देवी के भक्त जो भोपा नाम से जाने जाते हैं, अपना नाच व गायन प्रस्तुत करते थे। देश की अन्य देवियों की तरह महाराजा बली चढ़ा कर उन भोपों को इनाम देते थे। शामियाने के पीछे अलग एक कक्ष बनाया जाता था। उसमें दोपहर का सादा भोजन होता था। उसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों से आए गायक भजन प्रस्तुत करते थे। शाम की आरती करने के बाद महाराजा वापस भरतपुर अपने महल में आ जाते थे। इस प्रकार मेले में जाने से उनका जनसंपर्क बढ़ता था और साथ ही अनुष्ठान होते थे।