खिलाड़ी बोले…धारीवाल कौन है बयान देने वाले राज्य एससी आयोग के अध्यक्ष खिलाड़ी लाल बैरवा ने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता शांतिलाल धारीवाल के बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस में सब कुछ हाईकमान तय करते हैं। हाइकमान जो तय करेगा, वही आगामी चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा होगा। बैरवा ने कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव किसके नेतृत्व ने लड़ा जाएगा यह फैसला करने का अधिकार आलाकमान का है। धारीवाल कौन होते हैं ये बयान देने वाले। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में हर फैसला हाईकमान करते हैं। हाईकमान जो तय करेंगे वही मुख्यमंत्री का फेस होगा। धारीवाल हाईकमान के अधिकार का अधिग्रहण नहीं कर सकते। बैरवा के सामने नगर निगम के महापौर अभिजीत कुमार ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि हमें एक हजार करोड़ का फंड नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि उस फंड की कोई उपयोगिता नहीं दलित पर खर्च ही न हो। उन्होंने पुलिस प्रशासन पर निशाना साधते हुए कहा कि दलितों की एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती। जिन दलित महिलाओं के साथ अत्याचार होता है उनको पुलिस थाने में जिल्लत झेलनी पड़ती है। मेयर ने कहा कि इसलिए ही कांग्रेस से दलित छिटक रहा है।
यह है गबन का पूरा मामला अनुजा (अनुसूचित जाति) निगम में कार्यरत एक कर्मचारी की ओर से वर्ष 2019 में करीब 20 लाख रुपए की राशि के गबन का मामला एक साल पहले सामने आया था। परियोजना प्रबंधक भावना राघव गुर्जर ने आरोपी कर्मचारी अतुल कुमार फौजदार के विरुद्ध पुलिस थाना मथुरा गेट में नामजद मामला दर्ज कराया था। इसके बाद हुई जांच में सामने आया था कि अनुसूचित जाति-जनजाति वित्त एवं विकास सहकारी निगम में 1.32 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ। निगम के ही कैशियर ने खुद, अपनी मां और चार अन्य रिश्तेदारों के खातों में बिना बिल वाउचर के 25 चेक जमा करवाकर यह राशि ट्रांसफर कर ली। कैशियर के खिलाफ दो एफआइआर 8.67 लाख रुपए व 50.48 लाख रुपए सहित कुल 59.16 लाख के गबन की दर्ज कराई गई। इसमें से 8.67 लाख रुपए के गबन के एक मामले में कैशियर अतुल कुमार फौजदार गिरफ्तार भी हो गया। लेकिन, बाकी दोषियों को अब तक बचाया जाता रहा है। यह 1.32 करोड़ रुपए की राशि अनुसूचित जाति-जनजाति के बेरोजगार युवाओं को दिए गए लोन की रिकवरी की थी। यह पैसा निगम के जयपुर मुख्यालय को जाना था।
विभागीय जांच में इन अफसरों को माना था दोषी विभागीय जांच में निगम की परियोजना प्रबंधक आरएएस भावना राघव गुर्जर, पूर्व परियोजना प्रबंधक पूरन सिंह और कनिष्ठ लेखाकार सुनील कुमार गुप्ता को भी दोषी मानते हुए अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई थी। इन पर आरोप था कि इन्होंने बैंकों से राशि मिलान का काम नहीं किया। बल्कि गबन करने वाले कैशियर और उसके परिजन एवं रिश्तेदारों के खातों में राशि ट्रांसफर से संबंधित पत्रों पर हस्ताक्षर करते रहे। हालांकि बाद में इस जांच रिपोर्ट को लेकर भी कथित दोषियों के बीच विरोधाभास बना रहा।