भरतपुर. अब सबकी नजर चार जून के मतगणना परिणाम पर टिकी हुई है। क्योंकि इस बार लोकसभा क्षेत्र की सभी आठों सीटों के मतदान प्रतिशत ने प्रत्याशियों को ही नहीं बल्कि खुद पार्टी के नेताओं को भी उलझा दिया है। इसमें सबसे बड़ा कारण यह भी है कि निर्वाचन शाखा और प्रमुख दोनों दलों की ओर से दो महीने की कोशिश के बाद भी मतदान प्रतिशत नहीं बढ़ पाया। यही कारण है कि समीकरणों में जोड़-तोड़ कर प्रत्याशी को खुद को विजेता बताने से पीछे हट रहे हैं। हालांकि सभी का यही कहना है कि चुनाव कांटे की टक्कर का है। इस बार लोकसभा चुनाव में विधानसभा वार मतदान पर नजर डालें तो मतदान प्रतिशत कोई खास नहीं बढ़ सका है। हालांकि कामां विधानसभा क्षेत्र में 2.32 प्रतिशत मतदान बढ़ा है। कठूमर विधानसभा क्षेत्र में 5.1 प्रतिशत घटा, नगर में 0.98 प्रतिशत घटा, डीग-कुम्हेर में 9.22 प्रतिशत घटा, भरतपुर में 8.5 प्रतिशत घटा, नदबई में 10.2 प्रतिशत घटा, वैर में 7.32 प्रतिशत घटा, बयाना में 9.49 प्रतिशत घटा है। जबकि 2019 में दो ही विधानसभा क्षेत्र ऐसे थे, जहां 2014 के लोकसभा चुनाव का रिकॉर्ड तोड़ा गया था। 2019 भरतपुर में 0.40, कामां में 0.11, नगर में 0.22, डीग-कुम्हेर में 0.18, नदबई में तीन, कठूमर में 5.70, वैर में 2.86, बयाना में 2.01 प्रतिशत मतदान अधिक हुआ था। दूसरे मायने में यह भी है कि भाजपा मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट, पूर्व मंत्री विश्वेंद्र सिंह की सभाओं के आधार पर मतदान प्रतिशत अच्छा होना मान रही थी। लेकिन इस बार ऐसा संभव नहीं हो सका। लेकिन यह तय है कि हार-जीत का निर्णय पिछले कुछ चुनावों के परिणामों की तुलना कम वोटों पर ही होगा। ऐसे में बताते हैं कि यहां इस बार दो प्रमुख प्रत्याशियों के बीच मतों का ध्रुवीकरण हुआ है। साथ ही मतदान प्रतिशत में कमी बताती है कि मतदान के प्रति लोगों में उत्साह कम था। हकीकत यह है कि मतदान होने के बाद अब राजनीतिक दलों के अनुमान गड़बड़ा गए हैं। अब हर विधानसभा में बड़े नेता सक्रिय कार्यकर्ताओं के जरिए फीडबैक जुटा रहे हैं तो प्रत्याशियों ने भी अपनी टीमों को बूथ क्षेत्रों में भेजा है। खास बात इसलिए भी है कि यह सीट मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का गृह क्षेत्र है। इसलिए भी दोनों ही दलों के लिए यह चुनाव कम नहीं आंका जा सकता है। लेकिन वोटों के प्रतिशत ने इन पार्टियों के हाइकमान को भी आश्चर्य में डाल दिया है। जब मतदान प्रतिशत की घटत-बढ़त को लेकर एक्सपर्ट बताते हैं कि तो सामने आया कि कांग्रेस और भाजपा का अपना-अपना जातिगत व परंपरागत वोट बैंक चला आता रहा है। हालांकि मतदान प्रतिशत कम या ज्यादा होने से किसी भी दल के फायदा या नुकसान का आंकलन नहीं किया जा सकता है। मेव, सैनी, जाटव, मीणा, जाट, ब्राह्मण, वैश्य समेत अन्य बड़े वोट बैंक वाली जातियों का मतदान प्रतिशत ही हार-जीत के निर्णय का आंकलन कर सकता है।