बस्तर

लायचा का कमाल, इसके सेवन से कोई नहीं होगा लंग्स व स्तन कैंसर का शिकार

भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर में ब्रेस्ट व लंग्स कैंसर में लाइचा ने अपने औषधिय गुणों को साबित किया, लाइचा चावल लंग्स और ब्रेस्ट कैंसर से लडऩे में कारगर

बस्तरApr 13, 2018 / 10:06 am

Badal Dewangan

जगदलपुर . कोंडागांव में पाई जाने वाली लाइचा धान ने अपनी औषधिय गुणों को बार्क(भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर, मुंबई) में हुए अनुसंधान में साबित कर दिखाया है। लाइचा धान की यह प्रजाति स्तन व फेफड़े के कैंसर की कोशिकाओं का प्रगुणन रोकने प्रभावी साबित हुई है। इस अनुसंधान से कैंसर के इलाज को लेकर आशा की एक नई किरण जागी है। इस अनुसंधान में राज्य की गठवन, महाराजी और लाइचा का परीक्षण किया गया था। इनमें बाकी दो की तुलना में लाइचा सर्वाधिक प्रभावी रही। औषधीय धान की ये तीनों प्रजातियां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में संग्रहित जर्मप्लाज्म से ली गई थीं।
ऐसे हुआ शोध
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर मुम्बई के मध्य हुए अनुबंध के तहत बार्क मुम्बई में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के एमएससी के छात्र निषेष ताम्रकार ने बार्क के रेडिएशन बायोलॉजी व हेल्थ साइंस डिविजन के डॉ. दीपक शर्मा और न्यूक्लियर एग्रीकल्चर एण्ड बायोटेक्नोलॉजी डिविजन के डॉ.बीे. दास के मार्गदर्शन में किया है। इन तीनों ही प्रजातियों के एक्सट्रेक्ट का प्रयोग स्तर मानव ब्रेस्ट कैंसर सेल्स (एमसीएफ -7)एवं मानव लंग कैन्सर सेल्स(ए-549)के प्रगुणन को रोकने के लिए किया गया था।
ब्रेस्ट में 65 तो लंग्स में शत-प्रतिशत सफल
अनुसंधान के निष्र्कषों से पता चलता है कि लाइचा सहित इन तीनों प्रजातियों में मेथेनॉल में बने एक्सट्रेक्ट ने ब्रेस्ट कैंसर की कोशिकाओं की वृद्धि को न केवल रोक दिया बल्कि इन्हें नष्ट भी कर दिया। इसमें लंग्स कैंसर के मामले में लाइचा ने शत प्रतिशत सेल्स को नष्ट किया जबकि इसकी तुलना में गठवन व महाराजी ने 70 प्रतिशत सेल्स को नष्ट किया। ब्रेस्ट कैंसर में लाइचा ने करीब 65 प्रतिशत कोशिकाओं को नष्ट किया वहीं गठवन ने10 व महाराजी के एक्सट्रेक्ट ने 35 प्रतिशत कोशिका को नष्ट कियाा। वैज्ञानिकों ने पाया कि सेल्स नष्ट करने के लिए आवश्यक एक्टिव इन्ग्रेडिएंट की मात्रा 200 ग्राम चावल प्रति दिन खाने से मिल सकती है।
कोंडागांव में बहुतायत
&धान की लाइचा किस्म कोंडागांव में बहुतायत से पाई जाती है। इन किस्मों को रायपुर सहित यहां विकसित किए जा रहे जीन बैंक में संग्रहित किया जा रहा है। इसके अलावा अन्य विशिष्ट किस्मों को भी यहां उपजाने कोशिश जारी है। बस्तर में पाई जाने वाली औषधिय व सुगंधित धान की किस्मों को भी संग्रहित व उत्पादित किए जाने प्रयास किए जा रहे हैं।
जीपी आयाम, कोआर्डिनेटर, केवीके
चूहों पर होगा प्रयोग
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय कृषि विश्वविद्यालय में डॉ. आरएच रिछारिया द्वारा संग्रहित छत्तीसगढ़ की धान की किस्मों के जरिए कैंसर का इलाज किया जाना छत्तीसगढ़ राज्य के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। अनुसंधान के अगले चरण में धान की इन किस्मों से एक्टिव तत्व अलग करने एवं उनका चूहों पर प्रयोग करने की योजना तैयार की जा रही है।
डॉ. एसके पाटिल, कुलपति

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