जसोल की हुई थी भाजपा में एंट्री
खास बात तो यह है कि राजस्थान में मतदान से पहले ही मानवेंद्र सिंह जसोल की भाजपा में एंट्री हो गई थी। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि इससे रविंद्र सिंह भाटी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को प्रत्याशी बनाया था। इसके बाद बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट से भाजपा के राजपूत प्रत्याशी नहीं उतारे जाने से राजपूत वोटर्स भाजपा से नाराज चल रहा था। ऐसे में रविंद्र सिंह भाटी के निर्दलीय ताल ठोंकने से राजपूत समाज का वोट बैंक उनके साथ जाता नजर आ रहा था। उधर, मारवाड़ की राजनीति में जसोल परिवार का खासा प्रभाव देखा जाता है। 2018 में जसोल परिवार की नाराजगी से भाजपा को मारवाड़ में बड़ा नुकसान हुआ था। ऐसे में राजपूत समाज को साधने के लिए भाजपा ने मानवेंद्र सिंह जसोल की पीएम मोदी की रैली से पहले वापसी करवा दी थी। वहीं मानवेंद्र सिंह जसोल की भाजपा में वापसी पर रविन्द्र सिंह भाटी ने कहा था कि वो मेरे बड़े भाई हैं। उनका व्यक्तिगत फैसला है।
वसुंधरा के खिलाफ लड़ा था चुनाव
बता दें कि मानवेंद्र सिंह एक राजनीतिक परिवार से हैं। पिता जसवंत सिंह राजस्थान की राजनीति का जाना-माना चेहरा थे। मानवेंद्र सिंह ने 1999 में बाड़मेर-जैसलमेर से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस के सोनाराम चौधरी से शिकस्त खाई। 2004 के चुनावों में मानवेंद्र सिंह ने वापसी करते हुए सोनाराम चौधरी को बड़े अंतर से हराया। हालांकि 2009 में फिर उन्हें कांग्रेस के हरीश चौधरी के सामने हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2013 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने शिव विधानसभा सीट से जीत हासिल की, लेकिन उन्होंने विधायक रहते हुए 2018 में भाजपा छोड़ दी थी। उसके बाद कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने झालरापाटन से वसुंधरा राजे के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन बड़े वोटों के अंतर से उनकी हार हुई। 2019 में बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं पाए। 2023 के विधानसभा चुनाव में सिवाना विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई।