अधिकारों के लिए लडऩे वाले को अधिकार मिलते हैं। सीमावर्ती क्षेत्र की एक दिव्यांग( दृष्टिबाधित)छात्रा ने अपने दिव्यांग (दृष्टिबाधित) भाई की दसवीं की परीक्षा में उसके लिए श्रुतिलेखक ग्यारहवीं कक्षा का उपलब्ध करवाने की जिद्द पकड़ ली। पहले न्यायालय से आदेश लाई और विभाग ने पहले प्रश्नपत्र में न्यायालय के आदेश को नहीं माना तो निदेशक माध्यमिक शिक्षा तक 24 घंटे में यह संदेश दे दिया कि वह न्यायालय के आदेश की अवमानना का रास्ता अपना लेगी। असर हुआ कि अब ग्यारहवीं कक्षा का श्रुतिलेखक मिलेगा।
चौहटन के सरूपे का तला निवासी दसवीं के छात्र योगेश पुत्र रतनलाल जैन दृष्टि बाधित दिव्यांग हैं। दृष्टिबाधित दिव्यांगों को परीक्षा में श्रुतिलेखक उपलब्ध होता है लेकिन वह संबंधित कक्षा से एक कक्षा कम स्तर का लेने का नियम बना है।
चूंकि मनीषा खुद दिव्यांग है और कॉलेज में पढ़ रही है तो उसने इसको पहले से ही जान लिया था कि कम स्तर का श्रुतिलेखक होने से दृष्टिबाधित की बात को समझ नहीं पाता और उसको परेशानी होती है। लिहाजा उसने इसके लिए पहले से ही न्यायालय में वाद दायर कर दिया।
न्यायालय ने 13 मार्च को आदेश जारी कर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में न्यूनतम शिक्षा स्तर, मार्क स्कोर, आयु की बाध्यता सहित आवश्यक जरूरतों के लिए शिथिलता करते हुए स्वेच्छा से श्रुतिलेखक उपलब्ध करवाने के आदेश कर दिए।
सचिव सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, प्रमुख शासन सचिव सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, निदेशक माध्यमिक शिक्षा निदेशालय, सचिव माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक बाड़मेर व प्रधानाचार्य राआउमा विद्यालय सरूपे का तला को पक्षकार बनाया था, जिसे मनीषा ने आदेश की प्रति पहुंचा दी।
नहीं माना आदेश योगेश व मनीषा ने जिला शिक्षा अधिकारी, माध्यमिक शिक्षा निदेशक और बोर्ड के सचिव के सामने आदेश की पालना की गुहार लगाई लेकिन इस आदेश को एक बार नहीं माना गया और गुरुवार को योगेश को नवमी कक्षा का छात्र ही श्रुतिलेखक उपलब्ध करवाया गया।
मनीषा ने किया पूरा विरोध परीक्षा के बाद मनीषा ने इसको लेकर तुरंत ही जिला शिक्षा अधिकारी से लेकर निदेशक स्तर तक सबको न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए एक बार फिर सचेत किया कि आदेश की अवहेलना हो रही है। इस पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने शुक्रवार को जिला शिक्षा अधिकारी को आदेश जारी कर दिया।