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डिजिटल डिमेंशिया : कुछ याद नहीं रहता है, स्टडी पर फोकस नहीं कर पाते

जो बीमारियां 50 के बाद शुरू होती है, अब स्क्रीन टाइम ज्यादा होने के कारण 20-25 आयु वर्ग के युवाओं में दिख रही है।

बाड़मेरSep 29, 2024 / 09:42 pm

Mahendra Trivedi

डिवाइस हमारे जीवन का हिस्सा बन चुके है। इससे जिदंगी काफी आसान हो गई है। घंटों में होने वाले काम मिनटों में हो रहे हैं। घर के बाहर जाने की जरूरत नहीं, घर बैठे ही काम कर सकते है। कई तरह की सुविधाओं को बढ़ाने वाले डिजिटल डिवाइस का उपयोग बहुत ज्यादा करने से ब्रेन की समस्याएं बढ़ती जा रही है। मस्तिष्क की एकाग्रता और क्षमता को प्रभावित करने वाली बीमारी को विशेषज्ञों ने डिजिटल डिमेंशिया नाम दिया है। यह बीमारी डिजिटल डिवाइस के अत्यधिक उपयोग का नतीजा है।

स्मार्टफोन युवाओं के ब्रेन पर बुरा असर डाल रहा

वर्तमान युग में मोबाइल का उपयोग सबसे ज्यादा हो रहा है। टैक्रोलॉजी ने भले ही जिंदगी आसान कर दी है, लेकिन इसकी कीमत कितनी बड़ी चुकानी पड़ रही है, इसका अंदाजा अभी नहीं लग रहा है। हाल ही में हुए वैज्ञानिक रिसर्च में आया सामने आया है कि स्मार्टफोन युवाओं के ब्रेन पर बुरा असर डाल रहा है। लगातार 12-15 घंटों तक मोबाइल के उपयोग से युवाओं में एकाग्रता की कमी और भूलने की शिकायत के केस बढ़ते जा रहे हैं। मोबाइल से इंसान का दिमाग कई समस्याओं से घिरता जा रहा है।

ध्यान भटकाते नोटिफिकेशन

युवा वर्ग मोबाइल फोन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा करते है। सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स और ई-मेल नोटिफिकेशन बार-बार ध्यान भटकाने का बड़ा कारण है। जिससे व्यक्ति फोकस नहीं कर पाता है और और उत्पादकता प्रभावित हो रही है। लगातार स्क्रीन पर रहने से याददाश्त कमजोर हो रही है। जो बीमारियां 50 के बाद शुरू होती है, अब स्क्रीन टाइम ज्यादा होने के कारण 20-25 आयु वर्ग के युवाओं में दिख रही है।

नींद को निगल रहा स्मार्टफोन


रात में स्क्रीन का उपयोग व्यक्ति की नींद को निगल रहा है। जो समय सोने के लिए है, उस दौरान मोबाइल या किसी भी तरह के स्क्रीन को लगातार देखने से स्लीपिंग ऑवर्स कम हो जाते है। विशेषज्ञ बताते है कि नीली रोशन दिमाग को जगाए रखती है और मलाटोनिन हार्मोन जो नींद के लिए जरूरी है, उसका स्तर कम कर देती है। जो धीरे-धीरे नींद सबंधी समस्याओं को पैदा करने का कारण बनती है। नींद नहीं आने से मानसिक के साथ शारीरिक विकारों की उत्पत्ति होती है जो जीवन में आगे चलकर अन्य कई तरह की परेशानियों पैदा कर देती है।

क्या-क्या भूला देते है इलेक्ट्रिक डिवाइस



सबसे पहले फोन नम्बर याद नहीं रहते है। कईयों के पास दो सिम है तो अधिकांश को शायद एक का नम्बर याद नहीं रहता है। स्टूडेंट्स की याददाश्त कमजोर हो रही है, पढ़ा हुआ याद नहीं रहता है है। कोई जानकारी लम्बे समय तक याद नहीं रहती है। दो-तीन साल पहले की कोई बात याद करने में दिमाग को काफी जोर लगाना पड़ता है। इस तरह की समस्याओं से घिरे किशोर और युवा मनो विशेषज्ञों के पास पहुंच रहे हैं।

24 में 3 घंटे स्क्रीन टाइम आदर्श


विशेषज्ञ बताते है कि स्क्रीन टाइम एक दिन में केवल 3 घंटे ही आदर्श माना गया है। इसके बाद डिजिटल डिवाइस ड्रग बन जाता है। दिन के 24 घंटे में 3 घंटे मोबाइल, टैबलेट, टीवी देखने पर मन और मस्तिष्क पर विपरीत असर पडऩे के चांसेज काफी कम होते है।


क्या कहते है एक्सपर्ट …

डिजिटल डिमेंशिया के केस काफी आ रहे हैं। खासकर स्टडी करने वाले 15 साल से लेकर कॉम्पीटिशन एग्जाम देने वाले 25 साल तक के युवा है जो याद नहीं रहने की शिकायत से पीडि़त है और उपचार के लिए आते है। एग्जाम की तैयारी करने वाले युवाओं को परेशानी यह है कि उन्हें पढ़ा हुआ याद नहीं रहता है। ऐसे केस में पता करने पर सबसे बड़ा कारण यही सामने आता है कि मोबाइल एडिक्शन है। ऐसे स्टूडेंट्स के कुछ केस में पता चला कि 8-10 घंटे तक स्क्रीन टाइम है जो काफी खतरनाक है। इससे ब्रेन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जबकि स्टूडेंट लाइफ में मस्तिष्क का विकास होता है। इस आयु में मोबाइल का उपयोग उसके मानसिक विकास को रोक देगा जो आगे जीवन में कई और परेशानियां पैदा कर देगा। मोबाइल की जरूरत पर ही काम में लेना चाहिए। अनावश्यक उपयोग से एडिक्शन हो जाएगा जो ठीक नहीं है।
-डॉ. गिरीश बानिया, विभागाध्यक्ष, मनोरोग विभाग राजकीय मेडिकल कॉलेज बाड़मेर

एक्सपर्ट के बताए बचाव के टिप्स अपनाएं

-सोने से एक घंटे डिजिटल डिटॉक्स का नियम अपना लें
-स्क्रीन के समय को निश्चित करें और ब्रेक भी लेना जरूरी
-मेडिटेशन जैसी गतिविधियों में शामिल होने का प्रयास करें
-आभासी दुनिया से निकलकर दोस्तों, परिवार के बीच बैठें
-7-8 घंटे की नींद लें और सूर्योदय से पहले बिस्तर छोड़ दें

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