1- हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब के सिलसिले से ख़ानकाहे नियाज़िया वजूद में आयी है। 2- ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स के मौके पर भी इस खानकाह में मुरीदों का हुजूम उमड़ता है। वैसे तो हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ का उर्स पूरी दुनिया में मनाया जाता है लेकिन बरेली की खानकाह नियाजिया की अहमियत इसलिए भी है क्योंकि यहां ख्वाजा गरीब नवाज़ के रूहानी जानशीन हज़रत शाह नियाज़ बे नियाज़ की दरगाह भी है। खानकाह में हर साल सैकड़ों लोगों कीमौजूदगी में तिलावते कुरान के साथ लोगों देश में अमन और चेन की दुआएं मांगी जाती है।
3- हर इंसान को एक परमात्मा की संतान मानने वाले हजरत शाह नियाज़ अहमद की खानकाह में मजहब और धर्म की दीवार कोई मायने नहीं रखती यहाँ लोंगो का सिर्फ एक ही मजहब है और वह है इंसानियत। यह खानकाह हर उस इंसान की पनाहगाह है जो मुश्किलों और वक़्त का मारा है
4- इस खानकाह की मान्यता है कि 17वीं रबीउल को अगर खानकाह में कोई मन्नतों का चिराग रोशन करेगा तो उसकी हर जायज मुराद जरुर पूरी होती है और ये सिलसिला 300 से भी ज्यादा वर्षों से लगातार चल रहा है।
5- जश्न ए चिरागा में शामिल होने के लिए हिन्दू-मुस्लिम सभी धर्मों के लोग बड़ी संख्या में खानकाह में आते हैं और मन्नतों के चिराग रोशन करते हैं। 6- जश्न ए चिरागा में शामिल होने के लिए देश के कोने कोने से तो मुरीद पहुंचते ही हैं साथ ही विदेशों से भी लोग इस रस्म में शामिल होने के लिए आते हैं।
7- खानकाह ए नियाजिया के प्रबंधक के प्रबंधक शब्बू मियां के अनुसार यहाँ ये सिलसिला 300 वर्षो से चल रहा है और खानकाह के बुजुर्ग हजरत शाह नियाज अहमद को गौस पाक ने बिशारत दी और कहा कि अगर खानकाह में 17वीं रबीउल दिन कोई अपना चिराग रोशन करेगा तो उसकी हर जायज मुराद एक साल के भीतर जरूर पूरी होगी और तभी से ये सिलसिला अनवरत चल रहा है। मुराद पूरी होने के बाद लोग यहाँ पर अगले साल एक चांदी का और 11 मिट्टी के चिराग रोशन करते हैं।
8- तीन सदी पुरानी इस खानकाह में हज़रात सहा नियाज़ अहमद और उनके परिवार जनों के अस्ताने हैं। इस दरगाह का सिलसिला ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती ग़रीब नवाज़ से है। यह एक ऐसी रूहानी जगह है जहाँ सभी को दिली सुकून मिलता है।
9- खानकाह -ए -नियाजिया की सबसे बड़ी ख़ास बात यह है कि यहाँ मुस्लिम समाज के लोंगों से ज्यादा हिन्दू समाज के लोग अकीदत रखते हैं और हर दिन यहाँ सैकड़ों लोग हाजिरी लगाते हैं उनमे ज्यादा संख्या हिन्दू समाज के लोंगों की होती है। दरगाह के प्रबंधक भी यही मानते हैं की खानकाह की स्थापना भाईचारा और सुफियिज्म को बढावा देने के लिए की गयी थी जो यहं भली भाती दिखाई देता है।
10- सूफी संगीत से जुड़े तमाम नामचीन फनकार हर साल यहाँ हाजिरी लगाने पहुंचते है।