वर्षपर्यंत समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है जिले के धरतीपुत्रों को बारां. जिले को यूं तो प्रदेश के कृषि प्रधान प्रमुख जिलों में शुमार किया जाता है। जिला अपने बासमती चावल, सोयाबीन, सरसों, मक्का, लहसुन और गेहूं के बंपर उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। इतना सब कुछ होने के बाद भी किसानों में खुशी नहीं बल्कि परेशानी और ङ्क्षचता का माहौल रहता है। दरअसल, समस्या खेत में निराई-गुड़ाई करने से ही शुरू हो जाती है। इस दौरान किसानों को बीज मिलने में परेशानी होती है। बीज मिल जाए तो पलेवा करने के लिए सिंचाई का नहरी पानी नहीं मिलता। और अगर किसी तरह पानी मिल जाए तो किसानों को फसलों के लिए खाद की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। इसके लिए किसान रतजगा कर खाद की दुकानों और समितियों के बाहर रातभर या तडक़े से ही आकर कतार में खड़े हो जाते हैं। इसके बाद भी गारंटी नहीं कि खाद आएगा ही। और आएगा तो मिलेगा ही। ये समस्याएं ही कम नहीं है। इसके बाद मौसम भी किसानों की परीक्षा लेने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ता। कम बारिश होने से सोयाबीन सूखने लगती है, बीज बेकार हो जाता है। अधिक बारिश हो जाए तो फसलों में खराबा हो जाता है। फसल हो जाए तो कटाई के लिए मजदूर नहीं मिलते। फसल कट जाए तो मंडी में जगह नहीं होने से इन्हें मंडी के बाहर रात-रातभर या कभी तो दो से तीन दिनों तक अपनी बारी का इंतजार करना होता है। कुल मिलाकर कहें तो जिले के किसान किसी भी मौसम में खुश नहीं रह पाते, कोई न कोई समस्या इनके आगे मुंह बाए खड़ी ही रहती है।
हर स्तर पर मिलती है परेशानी और पीड़ा
किसानों को बुवाई से लेकर कटाई के बाद जिन्स को मंडी में लेकर आने के बाद भी परेशानी से छुटकारा नही मिलता है। लेकिन यहां भी उसे जब परेशानी मिलती है तो उसकी पीड़ा और बढ़ जाती है। फसल बुवाई से पूर्व किसान को खाद के इंतजाम के लिए जूझना पड़ता है। गत कई वर्षों से प्रतिवर्ष डीएपी खाद की किल्लत से किसानों को ऐन मौके पर जूझना पड़ता है तथा परेशान होना पड़ता है। इस वर्ष भी ऐसे ही हालात रहे, इसके चलते किसानों को तीन-तीन चार-चार कट्टों के लिए भी लंबी कतारों में लगकर इंतजार करना पड़ा, तब कहीं जाकर गेहूं की बुवाई हो पाई।
किसानों को बुवाई से लेकर कटाई के बाद जिन्स को मंडी में लेकर आने के बाद भी परेशानी से छुटकारा नही मिलता है। लेकिन यहां भी उसे जब परेशानी मिलती है तो उसकी पीड़ा और बढ़ जाती है। फसल बुवाई से पूर्व किसान को खाद के इंतजाम के लिए जूझना पड़ता है। गत कई वर्षों से प्रतिवर्ष डीएपी खाद की किल्लत से किसानों को ऐन मौके पर जूझना पड़ता है तथा परेशान होना पड़ता है। इस वर्ष भी ऐसे ही हालात रहे, इसके चलते किसानों को तीन-तीन चार-चार कट्टों के लिए भी लंबी कतारों में लगकर इंतजार करना पड़ा, तब कहीं जाकर गेहूं की बुवाई हो पाई।
नहरी पानी छोड़ा तो हेड भीगा, टेल में सूखा फसल की बुवाई हो गई तो ङ्क्षसचाई की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इस वर्ष भी लंबे अंतराल के बाद किसने के आंदोलन ज्ञापनों के बाद नहर में जल प्रवाह शुरू किया गया। इसके चलते किसानों को काफी असुविधा व परेशानी का सामना करना पड़ा। सिंचाई की परेशानी से किसानों को बुरी तरह जूझना पड़ता है। नहरों की बदहाली का आलम यह है कि हैड तक तो पानी आसानी से मिल जाता है। टेल क्षेत्र पानी की बाट ही जोहते रहते हैं। कहीं-कहीं तो नहरों और माइनर इतने बदहाल हैं कि खेतों में सीपेज की समस्या भी परेशानी का बड़ा कारण है।
मंडी में फसल बेचना टेढ़ी खीर मंडी में उसे बेचने के लिए जूझना पड़ता है। यहां भी सुबह से शाम तक और कई किसानों को दो-दो दिन तक अपनी ङ्क्षजस बेचने के लिए रुकना पड़ता है। इस बार भी ऐसे हालत कई बार बने। धान व मक्का की एक साथ अधिक आवक हो जाने के कारण ऐसे बने की रात-रातभर ट्रॉलियों की सडक़ों पर लगी कतार में ही किसानों को रात गुजारनी पड़ी। हालांकि कृषि मंडी प्रशासन ने बाद में व्यवस्था को परिवर्तित करते हुए एक दिन धान और एक दिन मक्का की नीलामी शुरू करवाई, तब जाकर थोड़ी राहत मिली।
समन्यवय बनाएं और समस्याओं को चिह्नित करें सान महापंचायत के प्रदेश संयोजक सत्यानारायण ङ्क्षसह का कहना है कि प्रशासन के स्तर पर सीजन से पहले जून माह में ही किसानों के प्रतिनिधि मंडलों के साथ विद्युत वितरण निगम, खाद के संबंध में कृषि विभाग, पानी के लिए सिंचाई विभाग तथा मंडी में माल बेचान की व्यवस्था के संबंध में कृषि उपज मंडी समितियों के अधिकारियों की संयुक्त बैठकें हों। बैठक में किसानों की समस्याओं को चिन्हित किया जाए और संबंधित विभागों की चिन्हित समस्याओं के निस्तारण की जिम्मेदारी तय की जाए। वैसे बैठकों का आयोजन भी होता है, लेकिन अक्सर किसानों को दूर रखा जाता है। इससे किसानों को आधी अधूरी जानकारी मिलती है। नहरों की मोरी खोलकर पानी छोड़ दिया जाता है। माइनरों को बंद चालू कर टेल तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। छोटे किसानों को अधिक समस्या है। मंडी में माल बेचने के बाद पैसा हाथ में आएगा तो डीएपी, यूरिया का इंतजाम करेगा। मंडी में ट्रैक्टर-ट्रॉली खड़े करने और ढेरी लगाने की जगह नहीं मिलती। हाइवे से होकर पीछे के गेट से जाने में 10-15 किमी का चक्कर लगाना पड़ता है।
20 फीसदी रेलाई शेष चाई विभाग के अधिशासी अभियंता महेन्द्र मीणा का कहना है कि जिले में सिंचाई के तीन डिवीजन अन्ता, मांगरोल, बारां, दूसरा छीपाबडोद छबड़ा, अटरू और तीसरा किशनगंज-शाहाबाद हैं। अन्ता में दायीं मुख्य नहर, गणेशगंज व चेहडिय़ा के पास तुलसा लिफ्ट परियोजना से सिंचाई हो रही है। अभी अधिकांश क्षेत्र में पानी पहुंच चुका है। अब करीब 20 फीसदी ही रेलाई शेष है। यह भी 7-8 दिन में पूरी हो जाएगी। पिछले दो वर्षो से नहरों की मरम्मत कराई जा रही है।