चरम पर शिवभक्तों का उत्साह श्रीलोधेश्वर महादेवा में चारों ओर मस्ती, भक्ति और श्रद्धा की त्रिवेणी बह रही है। शिवभक्तों का उत्साह चरम पर है। पैरों में घुंघरू बांधे, सिर पर टोपी पहने, कांधे पर कांवड़ लिए और बम-बम भोले, हर-हर महादेव के जयकारे लगाते कांवड़िये महाशिवरात्र के मौके पर मदादेवा में भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए पहुंचे हैं। श्रीलोधेश्वर महादेवा में आज मध्यरात्रि के बाद कपाट खुलने के बाद से ही शिवभक्त देवाधिदेव महादेव का जलाभिषेक कर रहे हैं। बड़ी तादात में साइकिल, बाइक, ट्रैक्टर, वाहनों से शिवभक्त और कांवड़िये जयकारा लगाते भक्ति गीत गाते महादेवा पहुंचे हैं। कई शिवभक्तों ने दंडवत परिक्रमा भी की। महादेवा मेला क्षेत्र में सुरक्षा-व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किये हैं। सीसीटीवी कैमरों और पुलिस गश्त के जरिए सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। मेले में डॉग स्क्वायड और बम निरोधक दस्ता भी संदिग्ध वस्तुओं की जांच कर रहा है।
सारी मनोकामनाएं होती हैं पूरी महादेवा पहुंचे कांवड़ियों का कहना है कि यहां आकर भोलेनाथ के दर्शन करके सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। वहीं दूसरे कई भक्तों ने बताया कि उनकी रोजी-रोटी और पारिवारिक विवादों से संबंधित कई समस्याएं दूर हो गई। लोधेश्वर महादेव की चौखट से कोई खाली हाथ नहीं जाता है। जब से वह यहां आने लगे हैं जिंदगी की तमाम समस्याएं दूर हो गई हैं। वहीं लोधेश्वर महादेव के पुजारी आदित्य माहाराज ने बताया कि इस शिव मंदिर में जो भी शिवभक्त जलाभिषेक करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।
जल चढ़ाती थीं कुंती और पांडव बाराबंकी जिले की तहसील रामनगर के महादेवा में स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर का पौराणिक महत्त्व है। मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में अज्ञातवास के समय पांडवों ने कुछ समय घाघरा के तटीय इलाके में बिताया था। यही वह स्थान है। मान्यता है कि पांडव और मां कुंती यहां पूजा करती थीं। यहां माता कुंती ने रुद्र महायज्ञ किया और शिवलिंग की स्थापना का विचार बना। तब महाबली भीम बद्रीनाथ केदारनाथ के पर्वतीय अंचल से शिवलिंग लाए और महाराज युधिष्ठिर ने उसकी स्थापना की। कालान्तर में यह स्थान घाघरा की बाढ़ से आई रेत में दब गया जो बाद में शिवभक्त लोधेराम अवस्थी को प्राप्त हुआ। फिर उनके नाम के साथ जुड़ कर यह स्थान लोधेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हो गया।