इस विद्यालय के अधिकांश छात्र-छात्राएं अभावों में जीवन व्यापन के बावजूद अपनी शैक्षिक श्रेष्ठता को साबित कर रहे हैं। यहां पर तीसरी से लगाकर 12वीं कक्षा के अधिकांश बालक-बालिकाओं से राजस्थान के पचास जिले, भारत के 28 राज्य व 7 केन्द्र शासित प्रदेश व महाद्वीपों के अन्तर्गत आने वाले देशों के नाम कंठस्थ याद है और बिना रुके बोलते हैं।
आठवीं कक्षा का छात्र चन्द्रवीर चरपोटा पुत्र मुकेशचन्द्र चरपोटा सहित अन्य बच्चे सात महाद्वीप के 195 देशों के नाम के साथ भारत के सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों के नाम, राजस्थान के पचास जिलों के नाम कंठस्थ हैं। विद्यार्थियों ने बातचीत के दौरान बताया कि उनका लक्ष्य कलक्टर बन कर स्कूलों में भौतिक व शैक्षिक सुधार करना है।
एक को देख दूसरा सिखता गया
विद्यालय में बच्चों के शैक्षिक दृष्टि से विकास के लिए भौतिक संसाधन को विकसित किया गया। कक्षा कक्ष में डिजीटल बोर्ड आमजन के सहयोग से लगाए गए। इससे बच्चों में पढ़ने की रुचि बढ़ती गई। प्रारम्भ में बच्चों को सौर मण्डल व उसके ग्रह पर फोकस किया गया। फिर सौर मण्डल के तीसरे ग्रह पृथ्वी पर विभाजन विधि से पढ़ाना शुरू किया गया। इसमें पहले महाद्वीप के नाम फिर महाद्वीप के अनुसार देशों के नाम टुकड़ों-टुकड़ों में याद कराया और बच्चे को अगले दिन पूछा जाता और उसको प्रोत्साहित किया जाता रहा। यह देख अन्य बालक बालिकाएं भी यह याद करते गए और आज यह कांरवा बढ़ गया।
प्रत्येक बालक के घर से सर्म्पक
विद्यालय में हमेशा से 95 प्रतिशत से अधिक बच्चों की उपिस्थति रहती है। शिक्षकों के साथ अभिभावक भी जागरूक बन गए हैं। विद्यालय प्रशासन के पास प्रत्येक बालक के घर की कुलण्डी है और उनसे निरंतर सर्म्पक बनाए रखते हैं। वहीं वर्तमान में इस सत्र परतापुर और अन्यत्र निजी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने वाले बच्चों ने भी यहां पर प्रवेश लिया है। इसमें संस्था प्रधान स्वयं की दो बेटियां जो बांसवाड़ा के निजी शिक्षण संस्था में पढ़ रही थी उनका प्रवेश भी इसी विद्यालय में कराया।