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बांसवाड़ा

यहां भारत बंद के विरोध में उतरे ST-SC समुदाय के ही लोग, सरकार से की ये मांग

सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC-ST आरक्षण में क्रिमीलेयर और उपवर्गीकरण करने के फैसले के खिलाफ SC-ST समुदाय ने आज भारत बंद का ऐलान किया है। इस बंद को कई राजनीतिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है। हालांकि, राजस्थान के बांसवाड़ा में वंचित समुदाय के एक वर्ग ने इस बंद का विरोध करते हुए अपनी अलग मांगें रखी हैं।

बांसवाड़ाAug 21, 2024 / 04:02 pm

Anil Prajapat

बांसवाड़ा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC-ST आरक्षण में क्रिमीलेयर और उपवर्गीकरण करने के फैसले के खिलाफ SC-ST समुदाय ने आज भारत बंद का ऐलान किया है। इस बंद को कई राजनीतिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है। हालांकि, राजस्थान के बांसवाड़ा में वंचित समुदाय के एक वर्ग ने इस बंद का विरोध करते हुए अपनी अलग मांगें रखी हैं।

बांसवाड़ा में भारत बंद का विरोध

राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में भील आदिवासी समुदाय समेत अन्य दलित-आदिवासी संगठनों ने भारत बंद का विरोध किया है। उनका कहना है कि वर्तमान आरक्षण व्यवस्था से केवल एक वर्ग को लाभ मिल रहा है, जबकि बाकी वंचित रह जाते हैं। संगठनों का कहना है कि वे लंबे समय से आरक्षण में वर्गीकरण की मांग कर रहे हैं, जिसे ‘कोटे में कोटा’ कहा जा रहा है।

सरकार को ज्ञापन

इन संगठनों ने कलेक्टर के माध्यम से भारत सरकार को ज्ञापन सौंपते हुए ‘कोटे में कोटा’ आरक्षण जल्द लागू करने की मांग की है। प्रो. कमलकांत कटारा ने बताया कि राजस्थान में भील समेत जनजाति समुदाय लंबे समय से इस मांग को उठा रहे हैं, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ

प्रो. कटारा ने इस बंद को भारत के संविधान और सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि बहुसंख्यक दलित जातियां अब तक मुख्यधारा से दूर हैं और वे भी ‘कोटे में कोटा’ आरक्षण की मांग कर रही हैं। ऐसे में इस बंद का समर्थन नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह लोकतंत्र के विरोध में है।

विभिन्न संगठनों का समर्थन

आदिवासी आरक्षण मंच, अंबेडकर वेलफेयर सोसायटी बांसवाड़ा, वसीटा सेवा संस्थान बांसवाड़ा, जांबूखंड जन अधिकार मंच, बुनकर समाज विकास समिति, डाबगर सेवा संस्थान, बांसफोड़ समाज, वाल्मीकि समाज, खटीक समाज, मोची समाज आदि संगठनों ने भारत बंद का बहिष्कार करते हुए ‘कोटे में कोटा’ आरक्षण लागू करने की मांग की है।
बांसवाड़ा के विभिन्न दलित-आदिवासी संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे भारत बंद का समर्थन नहीं करते और उनकी प्राथमिकता ‘कोटे में कोटा’ आरक्षण की मांग को जल्द से जल्द पूरा करवाना है। अब देखना यह है कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है।

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