इस प्रकार तृष्णा से मोह और मोह से तृष्णा पैदा होती है। आदमी को अपने जीवन में तपस्या आदि के माध्यम से मोह और तृष्णा को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य ने कहा कि आदमी को तृष्णा और मोह को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य ने ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ पुस्तक के माध्यम से आचार्य महाप्रज्ञ के जन्म व उसके साथ हुई कुछ घटनाओं आदि का वर्णन करते हुए लोगों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि पुरुषार्थ के माध्यम से आदमी कुछ भी संभव किया जा सकता है।
आचार्य के मंगल प्रवचन के बाद अनेक-अनेक महिला, पुरुष आदि तपस्वियों ने उपस्थित होकर अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।
आचार्य के मंगल प्रवचन के बाद अनेक-अनेक महिला, पुरुष आदि तपस्वियों ने उपस्थित होकर अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।