उन्होंने बताया कि, उनकी टीम ने पहले चूहों पर अध्ययन किया और फिर मानव कोशिकाओं पर व्यापक शोध किया। विशेष रूप से उन अंगों पर गौर किया गया जहां यह कैंसर जन्म लेता है। शोध में उन्होंने पाया कि, वृद्धावस्था में सामान्य कोशिकाएं एक अलग किस्म का सांचा तैयार करती हैं। यह जवान कोशिकाओं की तुलना में बिल्कुल अलग होता है। अभी तक इन्हें ठीक से तरह से नहीं देखा और समझा गया है। उनकी टीम ने इन कोशिकाओं का बारिकी से अध्ययन किया।
प्रोफेसर भट ने बताया कि, जवान कोशिकाएं इन कैंसर कोशिकाओं से लड़ती हैं और दूर हटाती हैं। लेकिन, वृद्धावस्था में जब ये कोशिकाओं एक विशेष सांचा तैयार करती हैं तो वह कैंसर जैसी घातक बीमारी के लिए मददगार हो जाती हैं। कोशिकाओं का बूढ़ा होना एक तो उम्र बढऩे के साथ होता है। दूसरा, कीमोथेरेपी वाले ड्रग भी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं।
उन्होंने कहा कि, अगर कीमोथेरेपी के दौरान ड्रग का डोज जरूरत से अधिक हो जाए तो उसका व्यापक प्रभाव पड़ता है। इसलिए कीमोथेरेपी को बेहद संतुलित और सटीक तरीके से देने की जरूरत है ताकि, कैंसर कोशिकाएं मरे लेकिन, प्रभाव नहीं पड़े। दूसरा, यह समझना है कि, शरीर क्यों बूढ़ा होता है। क्या शरीर के बूढ़ा होने की गति धीमी कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि, शोध में यह पाया कि अगर, अगर कीमोथेरेपी सेनोलिटिक्स दवाओं के संयोजन में दिया जाए तो यह कारगर साबित हो सकता है।