साथ ही इससे चंद्रयान-2 मिशन लांच करने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। किसी रॉकेट के ऑपरेशनल होने के लिए कम से कम दो लगातार सफल उड़ान होना आवश्यक है। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लांच पैड पर जीएसएलवी मार्क-3 से स्वदेशी संचार उपग्रह जीसैट-29 मिशन के प्रक्षेपण के लिए मंगलवार दोपहर 2.50 बजे उलटी गिनती शुरू हो गई। लगभग 26 घंटे की उलटी गिनती के बाद बुधवार शाम 5.08 बजे इस मिशन को लांच किया जाएगा।
इसलिए महत्वपूर्ण है मिशन
दरअसल, चंद्रयान-2 मिशन पहले जीएसएलवी मार्क-2 से लांच करने की योजना थी जो ऑपरेशनल हो चुका है। लेकिन, नई योजना के मुताबिक चंद्र मिशन जीएसएलवी मार्क-3 से लांच किया जाएगा क्योंकि उसका वजन लगभग 6 00 किलोग्राम तक बढ़ चुका है। जीएसएलवी मार्क-3 की यह दूसरी विकासात्मक उड़ान है।
पहली उड़ान में इस रॉकेट ने 3136 किलोग्राम वजनी संचार उपग्रह जीसैट-19 को कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित किया था। इसरो अध्यक्ष के. शिवन ने पत्रिका को बताया कि लगातार दो सफल उड़ानों के साथ ही जीएसएलवी मार्क-3 को ऑपरेशनल घोषित कर दिया जाएगा। इस लिहाज से यह उड़ान बेहद महत्वपूर्ण है। इस बार यह रॉकेट 3423 किलोग्राम वजनी जीसैट-29 उपग्रह को लेकर उड़ान भरेगा और सफलता मिलने पर ऑपरेशनल हो जाएगा।
सबसे छोटा मगर सबसे ताकतवर
नई पीढ़ी के इस रॉकेट का वजन 6 40 टन है और यह 4 टन वजनी संचार उपग्रहों को पृथ्वी की भू-अंतरण कक्षा (जीटीओ) और 10 टन वजनी उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा (लोअर अर्थ आर्बिट या एलईओ) में स्थापित करने की क्षमता रखता है जिसमें मानव युक्त अभियान भेजे जाते हैं। लेकिन, मानव मिशन लांच करने की क्षमता हासिल करने के लिए इस रॉकेट को कम से कम 10 लगातार सफल उड़ानें भरना जरूरी है।
जीएसएलवी मार्क-3 इसरो द्वारा विकसित अन्य दो रॉकेटों पीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क-2 की तुलना में सबसे छोटा मगर सबसे भारी है। इसकी ऊंचाई 43.49 मीटर है जबकि पीएसएलवी की ऊंचाई 44 मीटर और जीएसएलवी मार्क-2 की ऊंचाई 49 मीटर है।
लेकिन, यह तीनों में सबसे अधिक वजनी रॉकेट है। जहां पीएसएलवी (एक्सएल) का वजन 320 टन है वहीं जीएसएलवी मार्क-2 का वजन 414 टन है। इसरो का पहला रॉकेट एसएलवी-3 का वजन 17 टन था और वह 22.7 मीटर ऊंचा था जबकि एएसएलवी की ऊंचाई 23.5 मीटर और वजन 39 टन था।
‘गाजा’ के रोड़ा बनने की संभावना नगण्य
इस बीच इसरो के उच्च पदस्थ अधिकारियों के मुताबिक मिशन की उलटी गिनती सुचारू चल रही है और रॉकेट में तरल प्रणोदक भरने का काम प्रगति पर है। हालांकि, मिशन लांच करने से पहले इसरो वैज्ञानिकों की नजर मौसम पर टिकी हुई है।
बंगाल की खाड़ी में उठे चक्रवाती तूफान ‘गाजा’ ने अगर श्रीहरिकोटा में दस्तक नहीं दी तो मिशन निर्धारित समय पर लांच होगा। शिवन ने कहा है कि अगर चक्रवाती तूफान का रूख प्रक्षेपण स्थल की ओर होता है तो मिशन की लांच तिथि फिर से निर्धारित की जाएगी।
उम्मीद है कि प्रक्षेपण के समय चक्रवाती तूफान प्रक्षेपण स्थल से 400 किलोमीटर दूर रहेगा और मिशन तय समय पर लांच होगा। दरअसल, लांच के समय अगर आसमान में हवा की गति 15 किलोमीटर प्रति घंटे के आसपास भी हो तो उसे आदर्श माना जाता है। लेकिन, चक्रवाती तूफान की स्थिति में जब हवा की गति काफी अधिक होती है मिशन लांच नहीं किया जा सकता।
16.43 मिनट कक्षा में होगा स्थापित
अगर मिशन लांच होता है तो प्रक्षेपण के लगभग 16 मिनट 43 सेकेंड बाद रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 डी-2 उपग्रह जीसैट-29 उपग्रह को 190 किमी (पेरिगी) गुणा 35,975 किमी (एपोगी) वाली अंडाकार भू-स्थैतिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित कर देगा।
इसरो की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार जीटीओ में स्थापित किए जाने के बाद चरणबद्ध तरीके से तरल एपोगी मोटर फायर कर जीसैट-29 उपग्रह को स्थायी रूप से 55 डिग्री पूर्वी देशांतर में 36 हजार किमी गुणा 36 किमी (लगभग) वाली भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा जहां यह उपग्रह ऑपरेशनल होगा और 10 वर्षों तक देश को सेवाएं प्रदान करेगा।
मिशन एक नजर में
* 67वां प्रक्षेपण यान मिशन श्रीहरिकोटा से * 33वां संचार उपग्रह जिसे इसरो ने बनाया * 23वां प्रक्षेपण दूसरे लांच पैड से * 5वां लांच साल 2018 का
* 2 विकासात्मक उड़ान जीएसएलवी मार्क-3 का * 640 टन वजन रॉकेट का * 3423 किग्रा वजन उपग्रह का