मरीज वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन के साथ कार्यरत है। यह सर्जरी लोकल एनेस्थीसिया देकर की गई। खोपड़ी की त्वचा में चीरा लगाकर चिकित्सकों ने जीवित लार्वा निकाला। मरीज स्वस्थ है। मरीज अमेजन वर्षावन की नियमित यात्री है। लार्वा का आकार एक सेंटीमीटर था।
ट्राइलाइफ अस्पताल के प्लास्टिक सर्जन डॉ. राघवेंद्र कलडगी ने बताया कि मरीज खोपड़ी पर सूजन की शिकायत लेकर अस्पताल आई थी। उसे करीब एक सप्ताह से असहनीय दर्द हो रहा था। सूजन दिन-ब-दिन बढ़ रही थी। उसे अपनी खोपड़ी में कुछ रेंगने जैसी अनुभूति हो रही थी।
जांच में मायियासिस की पुष्टि हुई
मायियासिस या बोटफ्लाई मानव ऊतक में एक मक्खी लार्वा (मैगॉट) का संक्रमण है। यह ट्रॉपिकल या सब ट्रॉपिकल क्षेत्रों में होता है। समय रहते उपचार नहीं होने की स्थिति में ऊतकों को नुकसान पहुंच सकता था। बॉटफ्लाई लार्वा बड़ा होता जाता है।
गलत निदान का खतरा
डॉ. कलडगी ने बताया कि भारत में बॉटफ्लाई संक्रमण के मामले अक्सर सामने नहीं आते हैं। गलत निदान का खतरा होता है क्योंकि लक्षण सामान्य त्वचा की स्थिति जैसे फोड़े आदि से मिलते जुलते हैं। चिकित्सा पेशेवरों को ऐसे मामलों में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है। विशेषकर मरीज ने जब हाल ही में दक्षिण अमरीका की यात्रा की हो।और दर्दनाक त्वचा फोड़े की शिकायत हो।
जागरूकता ही बचाव
त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. नीमा सैंड्रा डी. के अनुसार बॉटफ्लाइज वाले क्षेत्रों या देशों की यात्रा करने वालों को और विशेषकर amazon rainforest घूमते समय या मध्य और दक्षिण अमरिका में इकोटूरिज्म का आनंद लेते समय टोपी और पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़ों के साथ कीट प्रतिरोधी का उपयोग करना चाहिए।