फाउंडेशन इंडिया की चेयरपर्सन लता रेड्डी की उपस्थिति में गुरुवार को मैसूरु विश्वविद्यालय और दोनों फंडिंग संगठनों के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) का आदान-प्रदान किया गया।
चेन्नई में अमरीका महावाणिज्य दूत क्रिस्टोफर डब्ल्यू. होजेस ने कहा कि जेवीएम में संरक्षण परियोजना भारत के लोगों और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए अमरीका की दोस्ती और सम्मान का एक और प्रमाण है। अमरीका ने पिछले 20 वर्षों में एएफसीपी के माध्यम से 24 ऐसी परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए भारत के साथ साझेदारी की है।
मैसूरु विश्वविद्यालय को 2.5 करोड़ रुपए का एएफसीपी अनुदान पिछले 20 वर्षों में भारत में दिया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा अनुदान है। यह परियोजना संरक्षण और संग्रहालय विशेषज्ञों, वास्तुकारों, डिजाइनरों और कुशल शिल्पकारों को एक साथ लाएगी। मैसूरु विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एन. के. लोकनाथ ने कहा कि अमरीका हवेली के पश्चिमी विंग के संरक्षण कार्य का समर्थन कर रहा है। काम पहले से ही चल रहा है। वर्ष 2012 में, मैसूरु विश्वविद्यालय को ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के संरक्षण के लिए अमरीकी वाणिज्य दूतावास जनरल, चेन्नई से एक और अनुदान प्राप्त हुआ था। इंस्टीट्यूट में 40,000 से अधिक प्राचीन ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों का संग्रह है।
1905 में चामराज वाडियार की बेटी राजकुमारी जयलक्ष्मी अम्मानी के निवास के रूप में जय लक्ष्मी विलास हवेली का निर्माण हुआ था। मैसूरु विश्वविद्यालय ने वर्ष 1959 में स्नातकोत्तर केंद्र स्थापित करने के लिए इसे अधिग्रिहित किया।
हवेली में लगभग 125 कमरे, 300 खिड़कियां और 280 नक्काशीदार दरवाजे हैं। इसमें विश्वविद्यालय का लोकगीत संग्रहालय है, जिसे 1969 में डॉ. जवारेगौड़ा ने स्थापित किया था और इसमें लगभग 14,000 कलाकृतियों का संग्रह है। इसे लगभग 20 साल पहले एक बार इंफोसिस फाउंडेशन की फंडिंग से बहाल किया गया था। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों में, पतन शुरू हो गया और छत का एक हिस्सा ढह गया। बरसात के दौरान इसके पूरी तरह ध्वस्त होने का खतरा था।