इसरो ने कहा है कि, श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रोहिणी साउंडिंग रॉकेट (आरएच-560) का प्रक्षेपण कर दूसरी बार एयर ब्रीथिंग प्रणाली का परीक्षण किया गया जो सफल रहा। प्रणोदन प्रणाली को साउंडिंग रॉकेट आरएच-560 के दोनों ओर संतुलित रूप से लगाया गया था। उड़ान परीक्षण में साउंडिंग रॉकेट का प्रदर्शन संतोषजनक रहा। साथ ही, एयर ब्रीदिंग प्रोपल्शन प्रणाली का सफल प्रज्वलन हुआ। इस प्रणाली के आकलन के लिए 110 मानदंड तय किए गए थे और परीक्षण के दौरान उन सभी मानदंडों पर नजर रखी गई। मिशन से प्राप्त आंकड़े एयर ब्रीदिंग प्रोपल्शन प्रणाली विकसित करने के अगले चरण में उपयोगी साबित होंगे।
मिशन से पहले कई जमीनी परीक्षण
इसरो ने कहा है है कि, इस मिशन से पहले विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी), इसरो प्रोपल्शन परिसर (आइपीआरसी) सहित इसरो के विभिन्न केंद्रों और सीएसआइआर-नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज (एनएएल), बेंगलूरु में कई जमीनी परीक्षण किए गए। आरएच-560 साउंडिंग रॉकेट एक दो-चरणों वाला ठोस मोटर आधारित उप-कक्षीय रॉकेट है। इसे विभिन्न उन्नत प्रौद्योगिकियों का परीक्षण कम लागत में किया जाता है। यह इसरो का सबसे भारी साउंडिंग रॉकेट है।
इसरो ने कहा है है कि, इस मिशन से पहले विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी), इसरो प्रोपल्शन परिसर (आइपीआरसी) सहित इसरो के विभिन्न केंद्रों और सीएसआइआर-नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज (एनएएल), बेंगलूरु में कई जमीनी परीक्षण किए गए। आरएच-560 साउंडिंग रॉकेट एक दो-चरणों वाला ठोस मोटर आधारित उप-कक्षीय रॉकेट है। इसे विभिन्न उन्नत प्रौद्योगिकियों का परीक्षण कम लागत में किया जाता है। यह इसरो का सबसे भारी साउंडिंग रॉकेट है।
विश्व के चुनिदां देशों के पास है यह तकनीक
दरअसल, एयर ब्रीदिंग प्रोपल्शन प्रणाली के लिए स्क्रैमजेट इंजन की जरूरत होती है और इसरो विश्व के उन चुनिंदा अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है जिसने इस इंजन का विकास किया है। इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक रॉकेट इंजन में प्रणोदक (ईंधन) के साथ दहन पैदा करने के लिए ऑक्सीडाइजर के तौर पर तरल ऑक्सीजन भरा जाता है। एयर ब्रीदिंग प्रणाली से ईंधन में दहन पैदा करने के लिए प्रक्षेपण यान स्वत: वायुमंडल से ऑक्सीजन प्राप्त करेगा। धरती से लगभग 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक ऑक्सीजन की उपलब्धता है जिसका प्रक्षेपण यान उपयोग कर सकेंगे। इस प्रणाली से प्रक्षेपण यानों का लिफ्ट ऑफ द्रव्यमान कम हो जाएगा क्योंकि तरल ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। यह रॉकेट की कार्यक्षमता बढ़ाएगा और लागत में भी कमी आएगी। इस तकनीक में महारत हासिल करने के बाद पुन: उपयोगी प्रक्षेपण यान (आरएलवी) में भी इसका प्रयोग किया जा सकेगा। यह उसी तरह है जैसे उपग्रह सौर ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
दरअसल, एयर ब्रीदिंग प्रोपल्शन प्रणाली के लिए स्क्रैमजेट इंजन की जरूरत होती है और इसरो विश्व के उन चुनिंदा अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है जिसने इस इंजन का विकास किया है। इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक रॉकेट इंजन में प्रणोदक (ईंधन) के साथ दहन पैदा करने के लिए ऑक्सीडाइजर के तौर पर तरल ऑक्सीजन भरा जाता है। एयर ब्रीदिंग प्रणाली से ईंधन में दहन पैदा करने के लिए प्रक्षेपण यान स्वत: वायुमंडल से ऑक्सीजन प्राप्त करेगा। धरती से लगभग 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक ऑक्सीजन की उपलब्धता है जिसका प्रक्षेपण यान उपयोग कर सकेंगे। इस प्रणाली से प्रक्षेपण यानों का लिफ्ट ऑफ द्रव्यमान कम हो जाएगा क्योंकि तरल ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। यह रॉकेट की कार्यक्षमता बढ़ाएगा और लागत में भी कमी आएगी। इस तकनीक में महारत हासिल करने के बाद पुन: उपयोगी प्रक्षेपण यान (आरएलवी) में भी इसका प्रयोग किया जा सकेगा। यह उसी तरह है जैसे उपग्रह सौर ऊर्जा का उपयोग करते हैं।