इस पृष्ठभूमि में, राज्य सरकार को गरीब छात्रों को ध्यान में रखते हुए, सरकारी विश्वविद्यालयों को अतिरिक्त अनुदान देना चाहिए और यहां के डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए सरकारी डिग्री कॉलेजों की फीस तय करनी चाहिए।कामत ने कहा कि केएचइसी के प्रस्ताव के अनुसार सिंडिकेट की अनुमति से सरकारी विश्वविद्यालय फीस में प्रति वर्ष 10 प्रतिशत या हर दो साल में 20-25 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकते हैं। अगर यह लागू हुआ तो दो साल के भीतर सरकारी विश्वविद्यालयों की डिग्री फीस निजी डिग्री कॉलेजों के स्तर पर पहुंच जाएगी।
कामत ने आरोप लगाया कि कई विश्वविद्यालय फंड की कमी का बहाना बना पाठ्यक्रम शुल्क बढ़ाते हैं। इसीलिए सरकारी डिग्री कॉलेजों और सरकारी विश्वविद्यालयों की फीस में काफी अंतर है। इसलिए, यदि सरकार की मंशा एक समान फीस प्रणाली लाने की है, तो सरकार को सरकारी विश्वविद्यालयों के डिग्री पाठ्यक्रमों में सरकारी डिग्री कॉलेजों के समान शुल्क पैमाने को लागू करना चाहिए। तभी गरीब छात्र सरकारी विश्वविद्यालयों में पढ़ सकेंगे।