बालोद

निपानी के सात स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार गुमनामी के अंधेरे में, राष्ट्रीय पर्व पर नहीं लेते सुध

पूरा देश आज आजादी का 78वीं वर्षगांठ मनाएगा। देश की आजादी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने योगदान दिया। कुछ ने बलिदान भी दे दिया। आज भी इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

बालोदAug 15, 2024 / 12:10 am

Chandra Kishor Deshmukh

Freedom Fighters पूरा देश आज आजादी का 78वीं वर्षगांठ मनाएगा। देश की आजादी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने योगदान दिया। कुछ ने बलिदान भी दे दिया। आज भी इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

सेनानियों ने सहा अंग्रेजों का जुल्म

हम बात कर रहे हैं जिले के ग्राम निपानी की। इस गांव में सात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं। देश को आजाद कराने अंग्रेजों का जुल्म सहा। आज भी ये गुमनामी के अंधेरे में है। हर साल की तरह इस बार भी देश जश्न में डूबा रहेगा।

सेनानियों के परिवार की नहीं लेते सुध

जब अविभाजित दुर्ग जिला था, तब इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को राष्ट्रीय पर्व पर आमंत्रित किया जाता था और सम्मान भी करते थे, लेकिन जब से बालोद जिला बना, तब से इन सेनानियों व इनके परिवार की सुध लेना तो दूर जिला प्रशासन राष्ट्रीय पर्व के आयोजनों में इन्हें आमंत्रण तक नहीं देते।
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इन सेनानियों की बदौलत गांव को मिला गौरव ग्राम का दर्जा

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंदूलाल चंद्राकर व सात अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कारण गांव को गौरव ग्राम का दर्जा भी दिया गया, लेकिन इस गांव के ही सेनानी आज गुमनाम हो गए है।

जेल की सजा काटी, कोड़े भी खाए

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामदयाल के पोते हेमंत कुमार साहू ने बताया कि गांव में कुल 7 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। सभी अंग्रेजों की गुलामी का विरोध करते रहे। इन्हें अंग्रेज मुखबिर समझते थे। 1943 में गिरधारी, रामचरण, मनसा राम, दयाल दास, लोकनाथ, उधो राम, गोविंद दास गांव के खेत में बोए तिवरा, उड़द, गेहूं आदि की कटाई कर उसे बेचने दुर्ग जाने वाले थे। भाव कम होने से तिवरा, गेहूं, उड़द को बेचने राजनांदगांव ले जा रहे थे, तभी अंग्रेजों के दल ने अंजोरा के पास सभी को रोक लिया और बैल-गाड़ी सहित अनाज को जब्त कर लिया। सभी सातों को जेल में बंद कर दिया। चार साल बाद देश को 1947 में आजादी मिली, तब जेल से रिहा किए गए।
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प्रशासन इनकी पहली पीढ़ी को ही नहीं दे पाया सम्मान

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार व उनके बेटे आज वृद्धा पेंशन सहित सरकारी योजनाओं से वंचित हैं। इनकी पहली पीढ़ी को भी शासन सम्मान नहीं दे पा रहा है। उम्र के अंतिम पड़ाव में भी उनके पूर्वजों के बलिदान का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार शासन-प्रशासन से योजनाओं का लाभ मांग रहा।

पूर्व सीएम प्रकाशचंद ने दिया था स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का प्रमाण पत्र

उन्होंने बताया कि 1973 में अविभाजित मध्यप्रदेश शासनकाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी ने सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बुलवाकर उन्हें प्रमाण पत्र सौंपा था। उनके परिवार की सम्मान के तहत सेवा की थी। दुर्ग जिले में उनकी सूची भेजकर हर राष्ट्रीय पर्व में आमंत्रित करने के आदेश दिए थे। उन्हें दुर्ग जिले के समय पूरा सम्मान मिलता रहा। बालोद जिला बनने के बाद वे गुमनामी में हैं।

पेंशन के लिए तीन साल से चक्कर

ग्राम गोडऱी निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामचरण के पोते पालू साहू ने बताया कि शासन प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिला। किसी भी अधिकारी जनप्रतिनिधि ने हमारी ओर ध्यान नहीं दिया।

परिवार की स्थिति जानने नहीं पहुंचा कोई

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उधोराम के बेटे शंकरलाल ने बताया कि उन्होंने मध्यप्रदेश शासन काल में कई बार शासन-प्रशासन के चक्कर काटे, जिससे कुछ शासकीय योजनाओं का लाभ मिल सके। अभी भी सिर्फ चक्कर ही काट रहे हैं। किसी ने गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार की स्थिति जानने कोई नहीं पहुंचा। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी वही स्थिति है। आज हम गरीबी रेखा में जीवन जी रहे हैं। शंकर लाल ने मांग की है कि सेनानियों के परिवार के बेरोजगारों को रोजगार दें। योजनाओं का लाभ दिलाएं।

देश के लिए जेल जाने वालों की उपेक्षा दुखदाई

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गिरधारी राम के बेटे रामसेवक सिन्हा ने बताया कि उन्हें उनके पिता की याद आती है। देश के लिए जेल गए उनकी उपेक्षा दुखदाई है। हमारे पिता ने देश के लिए अंग्रेजों से मार खाई, यातना सही, पर गांव में इतने स्वतत्रता संग्राम सेनानी होते हुए भी शासन-प्रशासन सुध तक नहीं ले रहा है। गांव को गौरव ग्राम का दर्जा मिला है, लेकिन हमारी स्थिति पर किसी का ध्यान नहीं है।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम से जाना जाए निपानी

डोमार ने बताया कि गांव में इतने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं ये बात कोई नहीं जानता। खासकर नई पीढ़ी इन बातों से अनजान है। विडंबना है कि पिता ने हम सबको अंग्रेजों की गुलामी से बचाने यातना सही। उसका फल उनकी पीढ़ी को नहीं मिल रहा। हम चाहते हैं सेनानियों को नाम मिले। इस गांव को स्वतंत्रता सेनानियों के नाम से जाने। इस ओर शासन-प्रशासन को ध्यान देना चाहिए।

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