आजादी में योगदान, शिक्षक और विधायक भी रहे
जिले के ग्राम भरदा निवासी हीरालाल सोनबोइर ने देश की आजादी में अपना अहम योगदान दिया। बेहतर शिक्षकीय कार्य व शिक्षा नीति के कारण राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने उन्हें सम्मानित किया था। वे बालोद के लिए तीन बार विधायक चुने गए और विकास व राजनीति के क्षेत्र में अलग पहचान दिलाई। यह भी पढ़े : बच्चों के जीवन में ला रहे उजाला
दूसरी ओर गुंडरदेही ब्लॉक के ग्राम खुटेरी रंग के शासकीय प्राथमिक शाला स्कूल में पढ़ाई कराने वाले शिक्षक मुखराम सिंह कुशवाहा हैं, जो खुद नेत्रहीन हैं, लेकिन 19 साल से बच्चों को पढ़ा कर उनके जीवन में उजाला लाकर भविष्य संवार रहे हैं।
हीरालाल जिले के पहले शिक्षक, जिन्हें डॉ. राधाकृष्णन ने किया सम्मानित
डौंडीलोहारा विकासखंड के छोटे से ग्राम भरदा निवासी हीरालाल सोनबोइर का देश की आजादी में अहम योगदान था। वे पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व शिक्षक हैं, जिन्हें राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन ने 1961 में उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में सम्मानित किया। स्व. हीरालाल सोनबोइर बालोद विधानसभा के तीन बार विधायक भी रहे। यह भी पढ़े : पढ़ाने के साथ गांव-गांव में बांटते थे अंग्रेजों के खिलाफ पर्चा
हीरालाल सोनबोइर आजादी के पहले शिक्षक रहते हुए अंग्रेजों के खिलाफ पर्चा गांव-गांव में बांटते थे। उनका जन्म गांव के एक सामान्य किसान घनाराम साहू-ग्वालिन बाई के घर एक जनवरी 1907 को हुआ। उनके जन्म पर एक केंवट ने उनकी मां को कहा, तोर बेटा हीरा कस चमकत हे तो परिजनों ने उनका नाम हीरालाल रख दिया। हालांकि वे हमारे बीच नहीं है, लेकिन आज भी वे हमारे आदर्श हैं और शिक्षकों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
90 की उम्र में ली अंतिम सांस
1961 में राष्ट्रपति से आजादी में विशेष योगदान और बेहतर शिक्षा नीति के तहत उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार मिला। 60 वर्ष की उम्र में कांग्रेस ने बालोद विधानसभा से टिकट दी। 1967, 1972, 1980 में विधायक रहे। 90 वर्ष की उम्र में 16 अप्रैल 1997 को अंतिम सांस ली।
शिक्षक मुखराम सिंह मन की आंखों से पढ़ाते हैं बच्चों को
शासकीय माध्यमिक शाला खुटेरी रंग में पदस्थ नेत्रहीन शिक्षक मुखराम कुशवाहा लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। वे दोनों आंख नहीं होने के बावजूद ब्रेल लिपी पुस्तक से बच्चों को पढ़ाते हैं। इनके पढ़ाने के तरीके को देखकर कई लोग उनके मुरीद हो गए हैं। मुखराम कहते हैं कि जमाना हमें कुछ भी कहे और कुछ भी माने। हमने हार नहीं मानी और मेहनत कर शिक्षक बने हैं। उन्होंने सभी दिव्यांगों से कहा कि हम अपने आपको कमजोर न माने। भगवान ने हम दिव्यांगों को कुछ विशेष शक्ति भी दी है। उस शक्ति को पहचानकर अपनी प्रतिभा को आगे लेकर उसे निखारने का प्रयास करें।
जब तीन साल के थे, तब आंख खराब हुई
उन्होंने बताया कि जब वह तीन साल के थे, तब उनकी एक आंख खराब हुई। उसके बाद आंख का ऑपरेशन कराया तो दूसरी आंख से भी दिखना बंद हो गया। पहले तो तनाव में था। अब क्या करूं, लेकिन हिम्मत नहीं हारा और पढ़ाई की। एमए सामाजिक विज्ञान की पढ़ाई करने के बाद वह शिक्षक बने और 2005 से पढ़ाई करा रहे हैं। वहीं इनके पढ़ाई कराने के तरीके देख कलेक्टर व शिक्षा अधिकारी भी प्रभावित हुए।