1989 में पहली पदस्थापना
नेत्रहीन सहायक शिक्षक रमेश कुमार बताते हंै कि उनकी पहली पदस्थापना 1989 में प्राथमिक शाला गुडरू में हुई थी। आंखो की दिव्यांगता के कारण उनकी भर्ती हुई, उस समय उन्हें थोड़ा बहुत दिखता था। लेकिन कुछ साल बाद उन्हें दिखना बिलकुल बंद हो गया। नवंबर 2008 में उनकी पदस्थापना शासकीय माध्यमिक शाला भरवेली में हुई। इसके बाद से वे यहां विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हंै। उन्होंने कहा कि काफी इलाज के बाद भी उनकी नेत्रहीनता ठीक नहीं हुई। पूरी जानकारी मैने विभाग को दे दी है। उन्होंने कहा कि कार्य के दौरान उन्हें सहयोगी शिक्षको के साथ ही विद्यार्थियों का भी अध्ययन में अच्छा सहयोग मिलता है। बस डर यह रहता है कि उनकी नेत्रहीन का कोई बच्चा फायदा उठाकर कक्षा से ना चले जाए। हालांकि अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ है।
नेत्रहीन सहायक शिक्षक रमेश कुमार बताते हंै कि उनकी पहली पदस्थापना 1989 में प्राथमिक शाला गुडरू में हुई थी। आंखो की दिव्यांगता के कारण उनकी भर्ती हुई, उस समय उन्हें थोड़ा बहुत दिखता था। लेकिन कुछ साल बाद उन्हें दिखना बिलकुल बंद हो गया। नवंबर 2008 में उनकी पदस्थापना शासकीय माध्यमिक शाला भरवेली में हुई। इसके बाद से वे यहां विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हंै। उन्होंने कहा कि काफी इलाज के बाद भी उनकी नेत्रहीनता ठीक नहीं हुई। पूरी जानकारी मैने विभाग को दे दी है। उन्होंने कहा कि कार्य के दौरान उन्हें सहयोगी शिक्षको के साथ ही विद्यार्थियों का भी अध्ययन में अच्छा सहयोग मिलता है। बस डर यह रहता है कि उनकी नेत्रहीन का कोई बच्चा फायदा उठाकर कक्षा से ना चले जाए। हालांकि अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ है।