bell-icon-header
आजमगढ़

Hindi Diwas: महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की विरासत को नहीं संभाल पाया आजमगढ़

खंडहर में तब्दील हो चुका है उनका पैतृक आवास, कला भवन का निर्माण भी है अधूरा
विश्व हिंदी दिवस पर विशेष–

आजमगढ़Jan 10, 2021 / 04:28 pm

रफतउद्दीन फरीद

हरिऔध जी के आवास का अवशेष

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. कवि सम्राट कहे जाने वाले खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य ‘प्रिय प्रवास’ के रचयिता महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ किसी पहचान के मोहताज नहीं। हिंदी साहित्य में उनके योगदान का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ ने उन्हें एक बार सम्मेलन का सभापति बनाया और विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। पर इस महान हस्ती की धरोहर उनके पैृतक जिले के लोग ही नहीं संजो पाए। हरिऔध की जन्मस्थली खंडहर में तब्दील हो चुकी है। उनके द्वारा शुरू किया गया स्कूल भी बंद हो चुका है। उनके नाम पर एक कला भवन तो बना, लेकिन जर्जर होने पर 2013 में शुरू हुआ पुनर्निमार्ण आज तक पूरा नहीं हो पाया।

इसे भी पढ़ें- आजमगढ़ और हिंदी उर्दू अदब

यहां के लोग यह भी नहीं जानते कि जिन्हें लोग कवि सम्राट कहते हैं उन्होंने अधखिला फूल नामक उपन्यास भी लिखा, जिसने हिंदी साहित्य को अनोखे ढंग से समृद्ध किया है। कभी बोलचाल नामक ग्रंथ लिखकर हिंदी मुहावरों के प्रयोग की राह दिखाने वाले हरिऔध की स्मृतियां आज खुद कई-कई मुहावरों का चुभता हुआ पर्याय बनकर रह गई हैं। यह बात तो चुभती है कि निजामाबाद के लोगों की स्मृति में भले ही गर्व के साथ पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध मिल जाएं लेकिन निजामाबाद की धरती पर उनकी स्मृति कहीं नजर नहीं आती है। हरिऔध के नाम पर बने कला भवन का निर्माण अधूरा पड़ा है। इस तरफ न तो शासन का ध्यान है और ना ही प्रशासन का।

इसे भी पढ़ें- इंकलाब-ए-जमाना उर्दू पत्र के संपादक थे कैफी आजमी

आजमगढ़ के निजामाबाद में जन्मे थे
‘हरिऔध’ का जन्म आजमगढ़ जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर निजामाबाद कस्बे में पंडित भोलानाथ उपाध्याय के घर हुआ था। उन्होंने सिख धर्म अपना कर अपना नाम भोला सिंह रख लिया था, वैसे उनके पूर्वज सनाढ्य ब्राह्मण थे। इनके पूर्वजों का मुगल दरबार में बड़ा सम्मान था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा निजामाबाद एवं आजमगढ़ में हुई। पांच साल की उम्र में चाचा ने इन्हें फारसी पढ़ाना शुरू किया। हरिऔध निजामाबाद से मिडिल की परीक्षा पास करने के बाद वाराणसी के क्वींस कालेज में अंग्रेजी पढ़ने गए, लेकिन स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर काॅलेज छोड़ना पड़ा। घर रहकर संस्कृत, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी आदि का अध्ययन किया।

इसे भी पढ़ें- हिंदी दिवस: अयोध्या सिंह उाध्याय ‘हरिऔंध’, जिसने हिंदी को इतना दिया, हम उसकी विरासत तक नहीं संजो सके

बीएचयू में अवैतनिक शिक्षक रहे
1884 में निजामाबाद के मिडिल स्कूल में अध्यापक हो गए। इसी पद पर कार्य करते हुए उन्होंने नार्मल-परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इनका विवाह आनंद कुमारी के साथ हुआ। वर्ष 1898 में हरिऔध जी को सरकारी नौकरी मिल गई। वे कानूनगो हो गए। इस पद से 1932 में अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में अवैतनिक शिक्षक के रूप से कई वर्षों तक अध्यापन कार्य किया।

इसे भी पढ़ें- कौन थे अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔंध

अठवरिया मैदान में लिखा ‘प्रिय प्रवास’
वर्ष 1941 में वे निजामाबाद लौट आए। उन्होंने आजमगढ़ में एक स्कूल भी खोलवाया। वहां भी वे अध्यापन के लिए जाने थे। इस दौरान साहित्य की सेवा भी करते रहे। कहते हैं कि प्रिय प्रवास का काफी हिस्सा उन्होंने स्कूल और अठवरिया मैदान स्थित मंदिर में बैठकर लिखा। वर्ष 1947 में उनका निधन हो गया।

इसे भी पढ़ें- हर में तब्दील हो चुका है हरऔंध का घर

स्मृतियां सहेजने में नाकाम रहा शहर
निजामाबाद कस्बे में आज भी कई लोग मिल इस बात पर गर्व करते मिल जाएंगे कि यह कवि सम्राट हरिऔध की धरती है। पर विडम्बना इस बात की है कि शहर उनकी स्मृतियां सहेजने में नाकाम दिखाई देता है। हरिऔध की खंडहर हो चुकी जन्मस्थली का पता भी सभी को मालूम है, लेकिन उनकी धरोहर और स्मृतियों को सहेजने, संवारने के बजाय लोगों ने उसे उसके हाल पर छोड़ रखा है। कवि हरिऔध के टूटे-फूटे घर के ठीक बगल में जगत प्रसिद्ध चरणपादुका गुरुद्धारा है। जहां गुरु तेग बहादुर और गुरुगोविंद, गुरूनानक देव आकर तपस्या कर चुके हैं। उनका गुरुद्धारे से रिश्ता भी रहा। वहां भी वो लेखन कार्य किया करते थे।

 

फाइलों में गुम हुई लाइब्रेरी और प्रतिमा
महाकवि के जन्म स्थान वाले कस्बे में आप उनके नाम का एक महाविद्यालय तक नहीं खोज पाएंगे। जनप्रतिनिधियों ने कस्बे के एक छोर पर उनकी छोटी सी प्रतिमा लगाकर जैसे अपना फर्ज पूरा कर लिया हो। कवि के एक प्रेमी ने उनके नाम से दो स्कूल स्थापित किये हैं। कभी इस स्कूल में शासन की ओर से प्रतिमा लगवाने और लाइब्रेरी खोलने की बात चली, लेकिन वो फाइलें कहां गुम हो गईं पता नहीं। उनके एकमात्र वारिस प्रपौत्र विनोद चंद शर्मा लखनऊ में रहते हैं और कभी-कभार ही आते हैं।

By Ran vijay singh

Hindi News / Azamgarh / Hindi Diwas: महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की विरासत को नहीं संभाल पाया आजमगढ़

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.